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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ - श्रीपाल कुमर भी अपने परिवार सहित तंबुओं में रहा हुआ सिंहासन पर बैठा हुआ नाटक देखे किसके जैसा विमानमें रहा हुआ देवके जैसा ॥ ४७७ ॥ सेट्ठिवि तंमि दीवे, बहुलाभं मुणिय विन्नवइ कुमरं । देव नियवाहणाणं, कयाणगे किं न विक्केह ॥ ४७८ ॥ अर्थ - धवल सेठभी उस द्वीपमें बहुत लाभ जानके कुमरसे वीनती करे हे देव हे महाराज अपने जहाजोंका क्रियाना कैसे नही वेचते हो ॥ ४७८ ॥ तो भइ कुमारो ताय, अम्हतुम्हाण अंतरं नत्थि । तं चिय कयाणगाणं, जं जाणसि तं करिज्जासु ४७९ अर्थ - तदनंतर कुमरकहे हे तात सदृश हमारे तुम्हारे अंतर नहीं है क्रियाणोंकी व्यवस्था जैसी तुमजानोहो वैसी करो ॥४७९ ॥ | हिट्ठो सिट्ठी चिंतइ, हुं हुं नियजाणियं करिस्सामि । जेण कयविक्कओ च्चिय, वणिणो चिंतामणि वित्ति ४८० अर्थ - यह श्रीपालका वचन सुनके सेठ बहुत खुशी हुआ विचारे अब मैं अपना जाना हुआ करूंगा जिस कारणसे वाणियोंके क्रय विक्रय चिंतामणि वांछित अर्थ साधक रत्नके सदृश लोक कहते हैं ॥ ४८० ॥ इत्तो य कोवि पुरिसो, सुरसरिसो चारुरूवनेवत्थो । सुपसन्ननयणवयणो, उत्तमहयरयणमारूढो ४८१ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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