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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir श्रीपाल- ते सवेवि हु कुमरस्स, तस्स मुहियाइ सेवगा जाया। कुमरेण ते निउत्ता नियभागागयपवहणेसु॥४५७॥ भाषाटीकाचरितम् सहितम्. | अर्थ-बाद वह सर्वही सुभट अन्यत्र आजीवीका नहीं पातेहुवे श्रीपालकुमरके विनाही मूल्य सेवक भए तब कुमरने|8 पाउन सुभटोंको अपने भागमें आए भए जहाजोंका अधिकारी किया ॥ ४५७ ॥ सयमेव महाकालं, बधाओ मोइऊण सिरिपालो । नियभागपवहणाणं, वत्थाईहिं तमच्चेइ ॥ ४५८॥ __ अर्थ-बाद श्रीपालकुमर आपही महाकाल राजाको बन्धनसे छुड़वाके अपने भागमें आए जहाजोंमें लेजाके वस्त्र 8 आभूषणोंसे सत्कार करे ॥ ४५८ ॥ सोवि हु ते सुहडा, पहिरावेऊण पवरवत्थेहिं । संतोसिऊण मुक्का, कुमरेण विवेयवंतेण ॥ ४५९॥ | __ अर्थ-और विवेकवान कुमरने सर्व सुभटोंको प्रधानवस्त्र पहराके संतोष उत्पन्न करके राजा सम्बन्धी सुभटोंको छोड़े और महाकाल राजाका विशेष सत्कार किया ॥ ४५९ ॥ महकालोवि हदण, तस्स कुमारस्स तारिसंचरियं चित्ते चमकिओ तं, अब्भत्थइ विणयवयणेहिं ४६० ___ अर्थ-महाकालराजाभी उस कुमरका वैसा आश्चर्यकारी चरित आचार देखके चित्तमें चमत्कार प्राप्त भया ऐसी ॥ ५९॥ दि कुमरसे विनययुक्त वचनोंसे प्रार्थना करे ॥ ४६० ॥ -CRORISENSEEN For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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