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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । 1. अर्थ-बादमें उन राजोको बांधके कुमर जितने अपने सथवाड़े के पास लावे उतने अपने राजाको बंधा हुआ देखके सथवाड़ेकी रक्षाके वास्ते जो पुरुष रक्खे थे वह पुरुष भाग गए ॥ ४५३ ॥ भवलो बंधविमुक्को, खग्गं चित्तूण धावए सिग्धं । महकालमारणथं, सिरिपालो तं निवारेइ ॥४५४॥ | अर्थ-अब धवलशेठ बंधनसे रहित हुआ खड्गलेके महाकाल राजाको मारनेके वास्ते जल्दी दौड़े तब श्रीपाल कुमर | धवलसेठको मनाकरे ॥ ४५४ । |गेहागयं च सरणागयं च वद्धं च रोगपरिभूयं । नस्संतं वुढे वालयं च, न हणंति सप्पुरिसा ॥४५५॥ | अर्थ-क्या कहके मनाकरे सो कहते हैं अहो सेठ अपने घर आया १ शरणे आया २ और बंधाहुआ ३ और रोगसे पीडित ४ और भागता हुआ ५ तथा वृद्ध नाम जरासे पीड़ित ६ और बालक इतने वैरी होवे तथापि सत्पुरुष नहीं मारे ऐसे नीतिके वचनसे यह राजाभी अपने घर आया है और बंधाहुआ है इसलिए अवध्य है अर्थात् मारने योग्य नहीं है ॥ ४५५॥ जे दससहस्ससुहडा, बबरसुहडेहिं ताडिया नट्ठा । तेसिं रुट्रो सिट्टी, जीवणवित्तीउ भंजेइ॥४५६ ॥ ___ अर्थ-जे दसहजार सुभट ववरराजाके सुभटोंसे ताड़े हुए भागगएथे उन्होंपर धवलसेठ नाराज होके उन्होंकी आजीवकाका निषेध किया ॥ ४५६ ॥ AAAAAAAAAA*** For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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