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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपालचरितम् भाषाटीकासहितम्. CASSAGALISASSASASARAM | अर्थ-बादमें वबर देशाधिपके सुभटोंने आकाशमार्गमें बाणोंका मंडप किया याने इतने बाण चलाए कि जिससे बाणोंका मंडप होगया तथापि कुमरके शरीरमें एकभी वाण नहीं लगे ॥ ४४९॥ कुमरसरहिं ताडिय,-देहा ते ववराहिवइसुहडा। केवि हुपडंति केवि हु, भिडंति नासंति केवि पुणो ४५० ___ अर्थ-कुमरके बाणोंसे ताडित देहजिन्होंका ऐसे वह ववर राजाके सुभट कितनेक पड़े याने गिरे और कितनोका| शरीर आपसमें मिले और कितनेक भाग गए ॥ ४५०॥ महकालोवि नरिंदो, मिल्लइ सयहत्थियं सहत्थेण । सोविन लग्गइ ओसहि,-पभावओ कुमरअंगमि ४५१ ___ अर्थ–महाकाल राजाभी अपने हाथसे शस्त्रको चलावे वह भी शस्त्र औषधिके प्रभावसे कुमरके शरीरमें नहीं लगे ॥ ४५१॥ तो वेगेणं कुमरो, गहिउं सयहत्थियं तयं चेव । अप्फालिऊण पाडइ, भूमीए बवराहिवइं ॥ ४५२॥ टू अर्थ-उसके बाद कुमर राजाके हाथको शस्त्रलेके और आस्फालन करके याने राजाके सामने फेंकके वधराधि पतिको पृथ्वीपर गिरावे ॥ ४५२ ॥ तंबंधिऊण कुमरो, आणइ जा निययसत्थपासंमि। तं दुटुं ते नट्ठा, सत्थाहिवरक्खगा पुरिसा ॥४५३॥ CASSAGESACCHER ॥५८॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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