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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ — कैसे बुलावे सो कहते हैं भो वबर देशाधिप इस वक्तमें इस प्रकार से तुम नहीं जा सकोगे इसलिए एकवेर पीछा पलटकर क्षणमात्र मेरा हाथ देखो अर्थात् मेरा बल देखो || ४४५ ॥ तो वलिओ महकालो, पभणइ वालोसि दंसणीओसि । वररूवलक्खणधरो, मुहियाइ मरेसि किं इक्को ॥ अर्थ - तब महाकाल राजा पीछा पलटके कुमरसें कहे ते बालक है तै देखनेयोग्य है रूपलक्षणप्रधानहे तेरा अर्थात् प्रधान रूप लक्षणका धारनेवाला ऐसा तैं एकाकी व्यर्थ निकम्मा क्यों मरता है ॥ ४४६ ॥ | कुमरोवि भणइ नरवर, इय वयणाडंवरेण काउरिसा । भजंति तुह सरेहिंवि, महहिययं कंपए नेव ॥४४७॥ अर्थ — तब कुमरभी कहे हे नरवर हे महाराज यह वचनके आडंबरसे कायर पुरुष भागते हैं मेरा हृदयतो तुझारे बाणोंसे भी नहीं कांपे इस वास्ते वृथा वचनका आडंबर मतकरो मेरा हाथ देखो ॥ ४४७ ॥ इय भणिऊण कुमरो, अप्फालेऊण धणुमहारयणं । मिलं (ल्हं) तो सरनियरं, पाडइ केउं नरिंदस्स ४४८ अर्थ - इस प्रकार से कहके कुमर अपने धनुषको आस्फालनकरके वाणोंके समूहकी वर्षात करता भया राजाके आगेका झंडा गिरादिया ॥ ४४८ ॥ तो ववरसुहडेहिं, विहिओ सरमंडवो गयणमग्गे । तहवि न लग्गड़ अंगे, इक्कोवि सरो कुमारस्स ॥४४९ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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