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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६५ ) तिहां प्रथम चउदे नियम संभारे, सो इसतरें पञ्चरकाण करे || उग्गए सूरे नमुक्कारसहियं मुठसहियं पच्चरकाइ चउविर्हपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहस्सागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिबत्तियागारेणं विगइओ पच्चरकाइ अन्नत्थणाभोगेणं सहस्सागारेणं लेवालेवेणं गिहत्थसंसिद्वेणं उरिकत्तविवेगेणं पञ्चमरिकएणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिबत्तियागारेणं देसावगासियं भोगपरिभोगं वा पच्चरकाइ अन्नत्थणाभोगेणं सहस्सागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वो सिरइ || इति नवकारसी पचरकाण ॥ १ ॥ तथा जो श्रावक नियम संभारे नहिं, सो विगइका ओर देसावगासिकका आगार न पच्चरके, निकेवल नवकारसी आदिक पच्चरकाण करे. सो लिखते हैं उग्गए सूरे नमुकारसहियं पच्चरका || चउव्विपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्न० ॥ सह० वोसिरामि ॥ इति नवकारसी पचरकाण || १ || आगार ॥ २ ॥ पोरसिं मुठसिं पच्चरकामि, उग्गएसूरे चउव्विपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थ० || सहस्सा० ॥ पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं || साहुवणेणं सव्व ० विगइओ पच्चरका मि. इत्यादि पूर्व्वकी परें कहणां ॥ इति पोरसी पच्चरकाण || २ || आगार ॥ ६ ॥ इस माफक साढ पोरसीका पच्चरकाण जाणना, इतना विशेष ५ श्रा० नि० For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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