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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६४) जगतमें आपसमो नहि कोई ॥ में देखा नेन नर जोई ॥१॥ बिरुद जूममले गाजे । फरसतां पापसहु लाजे । पूजतां संपदा पावे ॥ अचिंती सनि घर आवे ॥२॥ एके मुखे गुण कई केता ॥ मुळे हीये ग्यान नहि एता ॥ लालचंदकी अरज सुण लीजे ॥ चरणकी नक्ति मोहि दीजै ॥ ३ ॥ राजैथुन गेरठोर, ऐसो देव नहि और, दादो दादो नामसें. जगत्र जश गायो है। आपणही नाव आय, पुजै लरक लोकपाय प्यास नकों रन्नमां हे, पाणी थान पायो है ॥४॥ वाट घाट शत्रुदाट हाट पुरपट्ट. णमे देवगेहनेहसुं कुशल वरतायो है।धरमशीह ध्यान धरै सेवकां कुशल करै साचो श्रीजिन कुशलसूरि नामयुं कहायो है ॥५॥ ॥अथ चैत्री पूनम शुश् ॥ ॥ शेजुंजय गिरि नमिये रुपनदेव घुमरीक ॥ शुन तपनी महिमा, सुणि गुरु मुख निरनीक ॥ शुध मन उपवासे वधिसुं चैत्यवंदनीक करियै जिन आगल, टाली वचन अलीक ॥१॥ शक स्तवनादिक प्रथम तिलक दशवीस, अदत गिणती से, चढता तिम चालीस ॥ पंचासनी पूजा लाखे श्म जगदीस, तेहीज नित प्रणमुं स्वामी जिन चवीस ॥२॥ सुदि पहनी पूनम चैत्रमास शुजवार, विधिसेती लहिये आगमसाख विचार,श्म सोलवरस लग धरियै ज्ञान उदार, करतां नरनारी पामें नवनो पार ॥ ३॥ सोवन तनु चरणे नयणे तिम अरिविंद, चक्केसरि देविय सेविय नरसुर वृंद, कामित सुखदायक पूरय मन आणंद॥ जंपे गणनायक श्रीजिनलाल सूरिंद ॥॥इति श्री चैत्रीपूनम शू॥ ॥इति राई देवसी पमिकमण विधिः संपूर्णः ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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