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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२९ ) काउसग्ग नितकीजै ॥ खमासमण शुद्धचितमां धारो, प्रदक्षिणा करि गुणसंभारो, जिमछूटे भवलारो ॥ देवीचक्रेसरि सांनिधकारि, विमलेसर पूरे आस हमारि, सिद्धचक्रविधिसारि, श्रीजिनकृपाचंद्रसूरिभाखे, जिनआणा मनमांहि राखे, भवि सिवसंपदा चाखे ॥ ४ ॥ ॥ इति नवपद थुइ ॥ ॥ अथ नवपद थुइलि० ॥ सिरिसिद्धचक्क सेवो भवियां, सुहसंपयपावो अविचलियां ॥ १ ॥ सिरिअरिहाइ नवपयझात्रो, चउवीसजिणवइ गुण गावो ॥ २ ॥ नवआंबिल नवओलीकरिये, गुणनोजैति काउसग्ग धरिये ॥ तीनटंकदेवबंदनकीजै, जिनकृपाचंद्रसूरि जशलीजै ॥ ४ ॥ इति० ॥ ३ ॥ ॥ अथ सांतीनाथनी थुइलि० ॥ सांतिजिनराया सर्वजीवसुरकदाया, अचिरादेमाया जास सोवनकाया, विश्वसेनराया जासगुणगणसोहाया, मृगलंछनपाया मोक्षमंदिरसिधाया ॥ १ ॥ पदम वासु विसाला रक्तवर्णे सुहाला, चंद्रप्रभु धवला सुविधिजिनसुरकसवला, मुनिसुव्रत सांगला नेमिजिनराजकाला, मल्लि पारस नीला, सोलजिनराजपीला ॥ २ ॥ जिनवरनीवाणी मीठीसाकरसमाणी, भविजनमनभाणी मोक्षनीछे निशाणी, नयगममनआणी सर्वभंगप्रमाणी, सेवो श्रुतखाणी जैनशास्त्रे वखाणी ॥ ३ ॥ शासनसुखदाइ गरुडराजासहाई, वांछित - फलदाइ देविनिर्वाणीमाई, जिनचरणसहाइ सर्वसंपत्कराई, कृपाचंद्रसूरिदाई संघ शांति वरताई ॥ ४ ॥ इति थुइ ॥ ९ श्रा० नि० For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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