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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३० ) ॥ अथ रोहणीनी थुइलि० ॥ वासुपूज्य जिनेसर बंदु मनधरिनेह, सुखसंपतिकारण आराधो गुणगेह, रोहणीतपकरतां पामें भवनो पार, सातवरस सत्तावीश जघन्यउत्कृष्टदिलधार ॥ १ ॥ अतीतअनागतवर्तमान त्रिहुकाल, सहुजिन वरप्रणमो आणिभावविसाल, जिन जन्म महोछब सुरपतिकरे सुविचार, इम चोविशजिनवर पूजोविविध प्रकार ॥ २ ॥ चंद्ररोहिणीदिवसे तपआदरिये सार, गुणनो प्रदक्षिणा खमासमणसुविचार, यथाशक्ति करिये चोविहार उपवास, चित्रसैन रोहिणीपरे पामे लीलविलास || ३ || पड़िकमणो दोयटक देववंदनत्रिहुंकाल, आठपोहरिपोषध काउसग्गसुविसाल, सुयदेविसांनिध रोगसोगसहुजाय, जिनकृपाचंद्रसूरि तपसेव्यां सुखाय ॥ ४ ॥ इति थुइ ॥ ॥ अथ दीवालिनी थुइलि० ॥ वीरजिनेसरभवणदिनेसर अतिशयगुणनादरियाजी, भव्यकमलप्रतिबोधता शोधता श्रमण संघपरिवरियाजी, हस्तिपालराजानी शभामां अंतिमचोमाशी आयाजी, कातिवदिअमावसरात्रे खातिसिद्धसिधायाजी ॥ १ ॥ कल्याणक श्रीरिषभादिकना पांच पांच मनआणोजी, वीरनो गर्भापहारछठो आगममांहि गवाणोजी, तीनकाल जिनपूजाकरिने दीवालीदिन जागोजी, च्यार आठ दश दोय वंदीने आतम निजवर आणोजी || २ || दीवालीदिन छट्टकरीने गुणना ऋण गुणिजेजी, सोलपहरलग पोषघठविने ध्यान प्रभुनो धरिजेजी, गौतमस्वामी केवलपायो पड़वाने पुन्यवंताजी, एका For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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