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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२८ ) अंग इग्यारह सुजसलीजै ॥ मौनमनधारी शुभधर्मकारी । श्रुतज्ञाननी भक्ति करिये विचारी ॥ ३ ॥ आठपोहरी पोसह करि यथा शक्ते । तप जप करी उज्जमणो सुभक्ते ॥ इक चित्त घ्यावे सुयदेवि पसायें । श्रीजिनकृपाचंद्रसूरि सदा सुख थायें ॥ इति थुइ ॥ 11 8 11 ॥ अथ नवपदजीनी थुइलि० ॥ श्री सिद्धचक्र सुकर जाणो, ध्यान ए भविजन मनमा आगो, आतम तत्व पिछाणो, निरुपम सिव सुख कारण जाणो, आतमने निज घरमा आणो, अविचल संपदा खाणो || श्रीपालराजा नवपद साधे, सुरसुख पामी सेवि समाधे, अरिहंत पद आराधे, मनमोहन जिन गुण अगाधे, दायक लायक सिद्धि अबाधे, जग जश कीरति ला ॥ १ ॥ बारे गुण करि अरिहंत राजे, सिद्ध आठ गुण गणिवरछाजै, गुण छतीशविराजै ॥ पचीश गुण उवज्झायाराजै सत्तावीस मुनि महाराजे, सेवी गुणसुसमाजै ॥ दर्शन ज्ञान चरण तप कहिये, सिड़ सठ इकावन सितर लहिये, भेद पचास क्रम कहिये ॥ तेर सहस वलि गुणनो करिये, चउवीश जिनपति ध्यानज धरिये, इम भवसायर तरिये || २ || आसुमासनी सातमसेती, नव आंबिल करो सुखदेति, चैतरमास वहेति ॥ नव ओलि शुभभावे लेति, इक्यासि आंबिल सहु हेति, बोध बीजनी खेति || श्री श्रीपालने मयणाराणि, हरषभरि हियड़े हुलहाणि, नवपद ध्यान धराणि ॥ नवपदनी नित्य स्तवना जाणि, करो भविक जन शास्त्रप्रमाणी, आगम मांहि गवाणी || ३ || ऋण टंक पांच शक्रस्तवकीजै, दोय टंक आवश्यक लीजै, For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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