SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२७) ॥ अथ अष्टमीनी थुइलि०॥ आठ प्राति हारज जसुसोहे, मोहे भवि जन चंदाजी ॥ चंद्र प्रभु आठम दिनसेवो, अनुभवरसनाकंदाजी ॥ आठ प्रमादतजीनेधारो, परमातम पद सारोजी ॥ द्वीप नंदीसर यात्रा करतां, अरिहंतध्यानप्रकारोजी ॥ १ ॥ रिषभ अजित सुमति सुव्रत नमि, सुपारस संभव आयाजी ॥ आदीश्वर दीक्षा अभिनंदन, नेमिपास शिव पायाजी ॥ भिन्न मास अष्टमी कल्याणक, तीन कालमां जाणोजी ॥ आठ जातिना कलश लइने, मात्र करे सुर राणोजी ॥ २॥ आठे प्रवचन माता पालो दोष सर्वने टालोजी ।। ज्ञानादिआठ आचार सेवीने, आतमतत्व निहालोजी ॥ वीर जिनेसर अर्थ प्रकासे, सूत्र रचै गणधारीजी ॥ आठम तप आराधि भविजन, आठ वरसअधिकारीजी ॥ ३ ॥ पर्वतिथीमे पोषध भाख्यो, सिद्धांतछे जसुसाखीजी ॥ पड़िकमणो तपजप आदरीय, देववंदनविधि राखीजी ॥ आठमंगल आराधतां पावै, सुख संपति गुणभूरिजी ॥ श्रुतदेवीसुपसायलहीने, श्रीजिनकृपाचंद्रसूरिजी ॥ ४ ॥ ॥ अथ इग्यारसनी थुइलि०॥ एकादसी आखि आदिदेवे । आराधिने भवि सिवशर्मलेवे ॥ धरो ध्यान श्रीजिनराजकेरो । टले अनादिकालनो कर्महेरो ॥१॥ मल्लि जन्म दीक्षा केवल पहाणं । अरनाथ चारित्र नमि परम नाणं ॥ दश खेत्रना कल्याणक एम जाणो । दोढसोने वलि त्रणसो पिछाणो ॥२॥ इग्यारे वरस तिम मासकीजै । आराधि For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy