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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२६ ) निक्षेपा, चउ भंगी मन आणोजी ॥ बीज आराधि संपदा साधि, परमारथ पहिचाणोजी || ३ || बीजदिवस उपवास करीजे, पड़िकमणादिक सारोजी ॥ ए तप सुर सरिखो जाणो, निरुपम सुख दातारोजी ॥ कुमार यक्ष तिम शासनदेवी चंडा सांनिध भूरिजी || शुभफलदायकसंघने होज्यो, श्रीजिनकृपाचंद्रसूरिजी 118 11 ॥ इति धूइ० ॥ ॥ अथ पंचमीनी थुइलिः ॥ नेमिजिनेसर जगपरमेसर, पंचमिगतिनादाताजी || श्रावण सुदिपंचमिदिन जनम्या, त्रिभुवनमें विख्याताजी || समुद्रविजय नंदन जग बंदन, सिवा देवीमाताजी ॥ सहस बरस प्रभु आयुषपाली, पाम्या सिवसुखसाताजी ॥ १ ॥ काति वदि संभव केवल पाम्यो, मिगसर सुबुधि जायाजी ॥ चैत्र चंद्र जन्म अजित संभव, अनंत सुदि सिवपायाजी | वैशाखवदि कुंथु जिन दीख्या, पंचमि जगत सुहायाजी || धर्म धवलजेठ पंचमि सीधा, सुरनर मिल जशगायाजी ॥ २ ॥ पंचमी तपविधि भाखे जिनवर, अर्थ अधिक सुखकारीजी ॥ सूत्रे गणधर गुरु शुभ दाखे आगम मांहि सारीजी ॥ नंदिविधिकरी देवबांदीने, काउसरग मनधारीजी ॥ इकावन ज्ञानना भेदनमीने, श्रुत ज्ञान सेवो इक तारीजी ॥ ३ ॥ पडिकमणो दोय टंक करीने, ज्ञान आराधो प्राणीजी ॥ मगसरादि पटमासमांउचरो, आगममांहि गवाणीजी || जिनआणाधारक सुखकारक, खरतरगण श्रुतखाणीजी ॥ श्री जिनकृपाचंद्रसूरिपभणे, शासनदेवी सुहाणीजी ॥ ४ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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