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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२५) परचा जगमे परगड़ा । सेवेराव राजन । सेवानो फल तुरतलहे निहाल ॥ स०॥७॥ संघ उदय करो साहिबा । दयाकरी गुरुराज। अलिय विधन दूरै हरो । पूरो सहुजन काज । पूरीने प्रभु मेटो भवजंजाल ॥ स०॥८॥ ठामठाम गुरुसोभता. धुंभघणामहिराण । भावे सेवै भविजना । सदा सुरंगे वाण । तुमछो गुरुभक्ततणा रिच्छवाल ॥स० ॥९॥ सद्गुरु समजगको नहि । जीवनप्राण आधार । कमितपूरणसुरगवि । सुख कारण दिलधार । गुणनिधि अमचा परम कमाल ॥ स०॥ १० ॥ श्रीजिनदत्तसूरीशरू । मणियाला जिनचंद । कुशलकरण कुशलेसरू । प्रणमें जिनकृपाचंद । करजो प्रभु शासननी संभाल ॥ स० ॥ ११॥ इतिश्री दादासाहेब स्तवन संपूर्णम् ॥ ॥ अथ बीजनी थुइलिः॥ वासुपूज जिन अंतर जामी, मनविसरामी स्वामीजी ॥ भवि जन तारण शिवसुखकारण, निजगुणना प्रभु कामीजी ॥ बीज दिवस जिनवरशिवसुखकर, चंद्रविमानेपामीजी ॥ नगर बुहारिमा मनुहारि सेवो जिन सुख धामीजी ॥ १ ॥ वासुपुज्य पदम प्रभु राता, चंद्र सुविधि जिन धवलाजी ॥ मल्लि पास दोय नीलाजाणो, मुनि सुव्रत नेमी कालाजी ॥ आठद्विगुण जग नायक लायक, सोवन वरण सुहायाजी ॥ बीजदिवस नव नव चउद्विकजिन, बंदु अहनिशिपायाजी ॥२॥ दुविध धर्म जिनवर प्रकाश्यो, अर्थ अधिक सुख कारिजी ॥ सूत्रे करि गणधर गुरु भाख्यो, भवि जनना उपगारिजी ॥ दोय शिक्षा दोय नय For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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