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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir बोला क्यावा ही में बलम्बी-चौड़ी में ३६८ श्रमण-सूत्र विषय-सुखों की कल्पनाओं में फंसाके खूब, व संयम से दूर दुराचार में रमाया हो । दैनिक 'अमर' सर्व पाप - दोष मिथ्या होवें, श्रेष्ठ मनोगुप्ति में जो दूषण लगाया हो ॥ . वचन-गुप्ति बैठ जन - मण्डली में लम्बी-चौड़ी गप्प हाँक, .. बातों ही में बहुमूल्य समय गँवाया हो । बोला क्या वचन, बस वन-सा ही मार दिया, दीन दुखियों पै खुला आतंक जमाया हो । राज-देश-भक्त नारी चारों पिकथाएँ कह, स्व - पर - विकार - वासनाओं को जगाया हो। दैनिक 'अमर' सर्व पाप - दोष मिथ्या होवें, श्रेष्ठ वचोगुप्ति में जो दूषण लगाया हो। काय-गुप्ति भोगासक्ति रख नानाविध सुख-साधनों की, . मृदु कष्ट-कातर स्वदेह को बनाया हो । शुद्धता का भाव त्याग शृंगार का भाव धारा, . सादगी से ध्यान हटा फैशन सजाया हो ॥ अल्हड़पने में आ के यतना को गया भूल, .. अस्त-व्यस्तता में किसी जीव को सताया हो । दैनिक 'अमर' सर्व पाप - दोष मिथ्या होवें, __ श्रेष्ठ काय-गुप्ति में जो दूषण लगाया हो । अहिंसा-महाव्रत सूक्ष्म औ. बादर त्रस-स्थावर समस्त प्राणी __वर्ग, जिस-किसी भाँति जरा भी सताया हो। For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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