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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अतिचार-अालोचना ३६६ सुनते ही कटु-वाक्य अग्नि-ज्यों भभक उठा, निन्दकों के प्रति घृणा-द्वेष-भाव लाया हो । रोगी, दीन, दुःखी छोटे-बड़े सभी प्राणियों से, प्रेम-भरा बन्धुता का भाव न रखाया हो । दैनिक 'अमर' सर्व पाप-दोष मिथ्या होवें, आद्य महाव्रत में जो दूषण लगाया हो । सत्य-महाव्रत हास्य-वश लम्बी-चौड़ी गढ़ के गढन्त भूठी, औंधा-सीधा कोई भद्र प्राणी भरमाया हो। राज की, समाज की या प्राणों की विभीषिका से, भूठ बोल जानते भी सत्य को छुपाया हो । द्वेष-वश मिथ्या दोष लगा बदनाम किया, सत्य भी अनर्थकारी भूल प्रगटाया. हो । दैनिक 'अमर' सर्व पाप - दोष मिथ्या होवे। सत्य महाव्रत में जो दूषण लगाया हो । अचौर्य-महाव्रत अशन, वसन अथ अन्य उपयोगी वस्तु, मालिक की आज्ञा बिना तृण भी उठाया हो। मानव-समाज की हा ! छाती पै का भार रहा, विश्व-हित-हेतु स्वकर्तव्य न बजाया हो। वृद्धों की, तपस्वियों की तथा नवदीक्षितों की, रोगियों की सेवा से हरामी जी चुराया हो। दैनिक 'अमर' सर्व पाप-दोष मिथ्या होवें, ... ___ दत्त-महाव्रत में जो दूषण लगाया हो। For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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