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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir शोलोप ॥१७॥ अशरणनरगणशरणदचरण । करणसदनसमयतसमकरण ॥ अमलकमलदलवरकरचर- वृत्ति । जननमरणनवनयचयहरण ॥ ४६॥ नवनयकवलनकलकलकदन । नयशततततम. शशधरवदन ॥ अमरखचरनतरसमयसमय । तर शमनवरतमनयद सदय ॥४७॥ अनवममतधर मददवदहन । कपटहननकर शमधनन्नवन | सकलजगदवन नवगदशमन । सजलजलदरवजयकरवचन ॥ ॥ अमरणपदरत सततममदन । गणधरनतपद गजवरगमन ॥ मदनरघनतमघनचयपवन । धवलरदन जय जय नयमथन ॥ ४५ ॥ श्चमेकस्वरस्तुत्या । स्तुत्वा मल्लिजिनेश्वरं ॥ निषसाद सुराधीशो । दत्तदृष्टिर्जिनानने ॥ ५० ॥ प्रतिबुद्ध्यादिन्नि पैः। सहितः कुंनन्नूपतिः ॥ प्रदक्षिणय्य नत्वा च । मल्लि पुर नपाविशत् ॥५१॥ श्रीमलिरपि सर्वांगि-नाषाऽन्तिपरिणामिनीं ॥ देशनां प्रभुराचख्यौ । नववैराग्यकारणं ॥ ५५ ॥ प्र.) बुझः प्रतिबुद्ध्याद्या । नरेश अन्नजन् व्रतं ॥ श्रीमान् कुंननरेंशेऽपि । श्राइत्वं प्रत्यपद्यत १७011 ॥ ५३॥ त्रिपदीं प्राप्य येगानि । हादशापि कणाध्यधुः॥ जाता गणधरास्तेऽष्टा-विंशतिनिषगादयः॥ ५४॥ For Private And Personal
SR No.020714
Book TitleShil Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaykirtisuri, Somtilaksuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1909
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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