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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २८ ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नव फेरां ॥ १० ॥ शत्रुंजय बिंब संख्या सुणो ए, पन्नरसेंने पांस ॥ न्हाना महोटा देहरां देहरी, त्र बारा || सीतरिसय जिनवर तथा ए, रूप पा टीयें दीसे ॥ खरतर वसहीमां पेसतां ए, जोतां मन ह्रीं ॥ ११ ॥ एकावन घोरसा जलाए, जेणे शूकड घ सीयें ॥ [श्रादिदेव पूजा करी ए, जई शिवपुर वसीयें ॥ देहरा उपर गोमटी ए, संख्या सुयो वात ॥ एकसो एकशठ में गणी ए, मूकी परनी तात ॥ १२ ॥ जिन वन शिर उपरे ए पांच चोमुख शोहे ॥ सुर नर नारी सदु तं ए, दीठे मन मोहे ॥ त्रण कोट यति मनोहरु ए, जाणे त्रिगडुं दोसे, खरतर वसही मांहे जलाए, जोतां मनडो हींसे ॥ १३ ॥ पांच मूरति पांव तणी ए, जोतां धनिराम ॥ चौमुख प्रतिमा शोजती ए, सुरकरे गुणग्राम ॥ कलखा जोल चेलणा तलावडी ए, सिद्ध सिल्ला तिहां रूडी ॥ सिवड सिद्ध तलु ाम ए, नही वातज कूडी ॥१४॥ यादिसरनी मूल प्रतिमा, नरतेसरें कीधी ॥ पांचसें धनुषनी रत्नमय, करी मुक्तिज जीधी ॥ ते प्रतिमा शत्रुजे खबे, पण कोइ न पेखे || जव त्रीजे जे मुक्ति लहे, नर तेहीज देखे ||१५|| यादिसरने मूल देहरे, For Private and Personal Use Only
SR No.020710
Book TitleShatrunjay Tirthmala Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirnaysagar Press
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1885
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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