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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७ ) जोडीने वीनवुं ए, सुणो स्वामी वात ॥ धर्मविना नर जव गयो ए, नवि जाल्यो जात ॥ ५ ॥ कामक्रोध मद लोन वसें, जे में कीधा पाप ॥ प्रेम धरीने मुक्ति यो यादिशर बाप ॥ शांतिनाथ मरुदेवी भुवन, वेदु जमणां सोहे ॥ खागल यदबुद वदतां ए, नवि जन मन मोहे ॥ ६ ॥ परव एक वडव धबे, पासें पांच देहरी ॥ इंड् यंत्र यागे निरखतां ए, टा ले नव फेरी ॥ कूंतासर कोमेंकरी ए, ललिता सर जोड | नीरविना शोने नहीं ए, एतो महोटी खोड ॥ ७ ॥ ते घागल राम पोल ने, दीसे यनि राम || पासें वाघण तप तपे ए, तस सीधा काम ॥ खरतरवसहीने विमलवसही, बेदु जिमणां देखो ॥ मूलकोट मांहे पेसतां ए, पहिलां खादिसरदेखो ॥ ८ ॥ कावे पासें जिमणे पासें, प्रतिमा यति दीपे ॥ पुंम रिक बिंब यति नलो ए, रूपें त्रिभुवन जीपे ॥ महो टी प्रदक्षिणा देहरे ए, एकसो एक जाणुं ॥ तेम नान्दी दरखे कहुं ए, पच्चास वखाणुं ॥ ए ॥ कवड यह गोमुख जलोए, चक्केसरी देवी, शत्रुंजय सानिध करे ए, संघ विघ्न हरेवी ॥ रायण हेठें पगला घले, यादिसर केरां ॥ नावे नविपूजा करो ए, टालो For Private and Personal Use Only
SR No.020710
Book TitleShatrunjay Tirthmala Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirnaysagar Press
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1885
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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