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प्रणेमांना कोईए पण, संस्कृतादि अन्य भाषामां, रचना करी होय तेवो उल्लेख अमारा जोवामां तो हजी सुधी आव्यो नथी. आ त्रणे मुनिवरोनी परंपरा अने रचना नीचे मुजब छे.
१ अकबरप्रतिबोधक जगद्गुरु श्रीहीरसूरीश्वरजी महा. राजना शिष्य कल्याणविजय-शिष्य साधुविजय-शिष्य जीवविजय-शिष्य चन्द्रविजय. एमणे 'धन्नाशालिभद्र चोपाइ' बनावी छ. आ चोपाइनी कर्ताए स्वहस्ते धोराजी नगरमां लखेली प्रत इडरनो बाइओनो भंडार-के जे हवे 'आत्मकमल-लब्धिसूरीश्वर-शास्त्रसंग्रह' एवा इडरना केटलांक भंडारोनुं एकीकरण करी पाडेला नामे ओळसाय छे, तेमां छ.
२ तपागच्छीय श्रीऋद्धिविजय-शिष्य रत्नविजय-शिष्य चन्द्रविजय. एमणे सं० १७३४ ना पोष शुदि पांचमना दिवसे 'जम्बुकुमार रास' बनाबेलो छे.
३ तपागच्छीय उपाध्याय लावण्यविजय-शिष्य नित्यविजयशिष्य चन्द्रविजय. एमणे 'स्थूलिभद्र कोशाना बार मास' (१३ ढाल, ६७ कडी) नामक कृति बनावी छे. ___ आ सिवाय 'सेनप्रश्न 'मां पंडितचन्द्रविजयकृत प्रश्नो छ, ते आ प्रण पैकीना ज कोई हशे तेम लागे छे.
प्रस्तुत व्याख्याकारे 'श्रीचन्द्रविजयेन' एवा पोताना नाम: निर्देश सिवाय विशेष कशी माहिती आपेली न होवाथी, तेओश्री आ त्रणमांना क्या हशे? ते निर्णित कर मुश्केल छे. आत्रणथी भिन्न कोई नवा ज होय एम पण संभवी शके छे. उक्क त्रणेनो सत्तासमय श्रीविजयप्रभसूरिजीनो आचार्यपदकाल (सूरिपद सं० १७१०, कालधर्म सं० १७४९) छे एम निश्चित लागे छे. आ अंगे वधु माहिती कोई विद्वान्ने सांपडे तो प्रकाशमां लाववा प्रयत्न करे एव॒ सूचन छे.
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