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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रणेमांना कोईए पण, संस्कृतादि अन्य भाषामां, रचना करी होय तेवो उल्लेख अमारा जोवामां तो हजी सुधी आव्यो नथी. आ त्रणे मुनिवरोनी परंपरा अने रचना नीचे मुजब छे. १ अकबरप्रतिबोधक जगद्गुरु श्रीहीरसूरीश्वरजी महा. राजना शिष्य कल्याणविजय-शिष्य साधुविजय-शिष्य जीवविजय-शिष्य चन्द्रविजय. एमणे 'धन्नाशालिभद्र चोपाइ' बनावी छ. आ चोपाइनी कर्ताए स्वहस्ते धोराजी नगरमां लखेली प्रत इडरनो बाइओनो भंडार-के जे हवे 'आत्मकमल-लब्धिसूरीश्वर-शास्त्रसंग्रह' एवा इडरना केटलांक भंडारोनुं एकीकरण करी पाडेला नामे ओळसाय छे, तेमां छ. २ तपागच्छीय श्रीऋद्धिविजय-शिष्य रत्नविजय-शिष्य चन्द्रविजय. एमणे सं० १७३४ ना पोष शुदि पांचमना दिवसे 'जम्बुकुमार रास' बनाबेलो छे. ३ तपागच्छीय उपाध्याय लावण्यविजय-शिष्य नित्यविजयशिष्य चन्द्रविजय. एमणे 'स्थूलिभद्र कोशाना बार मास' (१३ ढाल, ६७ कडी) नामक कृति बनावी छे. ___ आ सिवाय 'सेनप्रश्न 'मां पंडितचन्द्रविजयकृत प्रश्नो छ, ते आ प्रण पैकीना ज कोई हशे तेम लागे छे. प्रस्तुत व्याख्याकारे 'श्रीचन्द्रविजयेन' एवा पोताना नाम: निर्देश सिवाय विशेष कशी माहिती आपेली न होवाथी, तेओश्री आ त्रणमांना क्या हशे? ते निर्णित कर मुश्केल छे. आत्रणथी भिन्न कोई नवा ज होय एम पण संभवी शके छे. उक्क त्रणेनो सत्तासमय श्रीविजयप्रभसूरिजीनो आचार्यपदकाल (सूरिपद सं० १७१०, कालधर्म सं० १७४९) छे एम निश्चित लागे छे. आ अंगे वधु माहिती कोई विद्वान्ने सांपडे तो प्रकाशमां लाववा प्रयत्न करे एव॒ सूचन छे. For Private And Personal Use Only
SR No.020695
Book TitleShanti Shloak Tika Tatha Anyamat Dushanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikramvijay
PublisherChandulal Jamnadas
Publication Year1954
Total Pages31
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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