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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ।। तृतीय अध्याय ॥पान ३२९ ॥ आठ लाख योजनका वलय विस्तार धान्या है । बहुरि ताकै परिवेढिवां पुष्करद्वीप है। सोलह लाख योजनका वलय विस्ताररूप है ॥ आगें, तिस पुष्करद्वीपकै पहले द्वीपसमुद्रनितें दूणां विस्तारकी रचनाकीज्यों धातकी खंडतें दूणां क्षेत्र आदिका प्रसंग आवे है । ताके निषेधके अर्थि विशेष नियमकै अर्थि सूत्र कहे हैं . ॥पुष्कराः च ॥ ३४॥ ___ याका अर्थ-- जंबूद्वीपके भरत हैमवत आदिकी अपेक्षाही पुष्कराईविभी दूणां क्षेत्र कुलाचल जाननां । दोय भरत दोय हिमवान् कुलाचल इत्यादि तेही तिनिके नाम हैं ॥ बहुरि धातकी खंडकीज्यौं इहांभी दोय इष्वाकार पर्वत जानने । बहुरि कुलाचलनिका विस्तार धातकीखंडके कुलाचलते दूणां जाननां । यह व्याख्यानतें जानी जाय है । बहुरि जहां जम्बूद्धीपविर्षे जम्बूवृक्ष है तहां पुष्कर द्वीपविर्षे पुष्करवृक्ष परिवारसहित जाननां । तिसहीकै | नामतें दीपका नाम प्रसिद्ध है । इहां पुष्करार्द्ध कह्या सो मानुषोत्तर नाम पर्वत या द्वीप मध्य है, तिसकरि विभाग भया । तातें ता पर्वतके उरै आधा द्वीप है । तातें पुष्करार्द्ध ऐसा नाम जाननां ॥ आगें, पूछ है कि, जंबूद्धीपकै हिमवत् आदिकी संख्या दोय वार आवृत्तिकरि पुष्कारार्द्ध में For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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