SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 348
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३३० ॥ | कही ताका कहां प्रयोजन है ? समस्तही पुष्करद्वीपविर्षे क्यों न कही? ऐसें पूछे सूत्र कहै हैं ॥ प्राङ्मानुषोत्तरान्मनुष्याः ॥ ३५॥ याका अर्थ- पुष्करद्वीपके बीचिही बीचि वलयवृत्तिरूप मानुषोत्तर नाम पर्वत है। तातें पहले पहलेही मनुष्य हैं। तातें बाह्य नाहीं। तातें वाहरिके पुष्करद्वीपमें क्षेत्रनिका विभाग नाही है । तिस पर्वततें परै ऋद्धिधारी तथा विद्याधरभी मनुष्य नाही गमन करै हैं । बहुरि जलचर जीव तथा विकलत्रय त्रसभी नही जाय हैं। तहां उपजैभी नाही हैं । उपपाद अर समुद्धाततें तो प्रदेश | बाहरि जाय हैं । विना उपपादसमुद्धात नाही जाय है । ताते याकी सार्थिक संज्ञा है । ऐसें जंबूद्वीप आदि अढाई द्वीप तथा लवणोद कालोद ए दोय समुद्रनिविही मनुष्य जाननां ।। __ आगें कहै हैं, ते मनुष्य दोय प्रकार हैं, ताका सूत्र ॥ आयर्या म्लेच्छाश्च ॥ ३६॥ याका अर्थ-- गुणनिकरि अथवा गुणवान पुरुषनिकरि सेईये ते आर्य कहिये । ते दोयप्रकार हैं । ऋद्धिप्राप्त अनृद्धिप्राप्त । तहां अनृद्धिप्राप्त आर्य पंचप्रकारके हैं । क्षेत्र आर्य , जाति आर्य , कर्म आर्य, | चारित्र आर्य, दर्शन आर्य ऐसे । बहुरि ऋद्धिप्राप्त आर्य सात प्रकारके हैं। बुध्दिऋद्धि, विक्रियाऋध्दि, || For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy