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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिववनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३२८॥ dilులుసు eline artiseaser release कहिये, जो, यह महल तिसते दूणां मापिये । इहां मापनां क्रिया है । तैसें इहां जंबूदीप विर्षे एक एक भरतादिक क्षेत्र है तातें दूणां दोय दोय गिणिये ऐसें द्विशद परि सुप्रत्य है सो जनावै है । तहां धातकी खंड लवणसमुद्रकू वेदै कडाके आकार है । ताके दक्षिण उत्तर | दिशाकू दोय इष्वाकार पर्वत पडे हैं । ते लवणोदसमुद्र अरु कालोदसमुद्रकी वेदी; जाय लगे हैं । इनितें धातकीखंडके दोय भाग भये हैं । एक पूर्व दिशाका भाग, एक पश्चिम | दिशाका भाग । तहां दोऊ भागनिविर्षे बीचि बीचि पूर्वपश्चिमकू दोय मेरु पर्वत हैं । तिनि दोऊनिके दोऊतरफ भरतादि क्षेत्र हैं । हिमवान् आदि कुलाचल हैं । ऐसें दोय दोय भरत आदि क्षेत्र दोय दोय हैमवत आदि कुलाचल जानने । बहुरि जंबूदीपविर्षे जो कुलाचल हिमवान् आदिका विस्तार है तिनितें दूणां कुलाचलनिका विस्तार जाननां । बहुरि कुला चल पहेके अरा होय तैसे तिष्ठे हैं, बहुरि अरानिकै बीचि छिद्र क्षेत्र होय है ; तैसें क्षेत्र अव| स्थित हैं । बहुरि जंबूद्वीपविर्षे जैसे जंबूवृक्ष है तैसें धातकीखंडवि धातकीवृक्ष है । परि| वारवृक्षनिसहित है । तिस वृक्षके योगते धातकीखंड ऐसी संज्ञा है। बहुरि ताकै ऊपरि वेड्या || कालोद समुद्र है । सो जैसे टाकीका छेद्या तीर्थ कहिये जलका निवास होय तैसें है । e rineinterestoration For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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