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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एतेन-एकस्य वाक्यस्य युगपदनेकार्थविषयत्वं प्रत्याख्यातम् , स्यादस्तिनास्त्येव घटः-स्वरूपपररूपादिचतुष्टयाभ्यामिति वाक्यस्यापि क्रमार्पितोभयविषयधर्मतयोररीकृतस्य उपचारादेवैकत्वांगीकारात् ॥ अथवा-तत्र क्रमशो विवक्षितं यदुभयप्राधान्यमेकं, तदेवास्तिनास्तिशब्दाभ्यामभिहितमिति तादृशवाक्यस्यैकार्थाभिधायित्वादेवैकवाक्यत्वमिति न दोषः सर्वस्य वाक्यस्यैकक्रियाप्रधानतयैकार्थविषयत्वप्रसिद्धेरेकार्थबोधनशक्तिश्शब्दस्य सिद्धा । न हि शब्दानां वचनसामर्थ्य सूचनसामर्थ्य वाऽतिक्रम्यार्थबोधने प्रवृत्तिस्सम्भवति । अस्तिशब्दस्य हि सत्त्वमात्रवचने सामर्थ्यविशेषो नासत्त्वाद्यनेकधर्मवचने । निपातानां वाचकत्वपक्षे स्यादिति शब्दस्यानेकान्तसामान्यवचने सामर्थ्यविशेषो न पुनरेकान्तवचने, नाप्यनेकान्तविशेषवचने, तेषां द्योतकत्वपक्षे चानकान्तसूचने सामर्थ्यविशेषो नान्यत्रेति वचनसूचनसामर्थ्यमतिक्रम्य शब्दप्रयोगो वृद्धव्यवहारेषु कापि न दृष्टचर इति ।। __ इस पूर्वोक्त कथनसे एक ही वाक्य समान कालमें अनेक पदार्थोंको कहता है यह कथन भी खण्डित हो गया । और "स्यादस्ति नास्ति एव घटः" किसी अपेक्षासे घट है और किसी अपेक्षासे नहीं है, इत्यादि वाक्यमें भी क्रमसे योजित स्वरूप आदि चतुष्टय तथा पररूपादि चतुष्टय उपचारसे ही एक वाक्य और दूसरे अर्थके लिये दूसरा वाचक चाहिये इसलिये एक ही शब्द दूसरा अर्थ कहनेको दूसरा होजाता है । अथवा "स्यादस्ति नास्ति एव" इस वाक्यमें क्रमसे कथन करनेको अभीष्ट जो सत्त्व असत्त्व एतदुभयरूप एक प्राधान्य है, वही अस्ति तथा नास्ति शब्दसे कहागया है इस रीतिसे उस वाक्यको एक अर्थ वाचकता होनेसे एक वाक्यरूपता ही है, इसलिये कोई दोष नहीं है, क्योंकि सब वाक्योंकी एक क्रियाकी प्रधानतासे एक अर्थ विषयता सिद्ध होनेसे ही एक अर्थको बोध करानेकी शक्ति शब्दकी सिद्ध होती है। शब्दोंकी कथैनरूप शक्ति तथा ज्ञापनरूप शक्तिको उल्लंघन करके अर्थ बोध करानेमें प्रवृत्तिका संभव नहीं होसकता, अर्थात् वाचकरूप शक्ति तथा द्योतनरूप शक्तिके द्वारा ही संपूर्ण शब्द अर्थ बोध करानेमें प्रवृत्त होते हैं। अस्ति इस शब्दकी सत्त्वमात्ररूप अर्थके कथनमें विशेष शक्ति है न कि असत्त्व आदिरूप अनेक अर्थोके कथनमें । और इसी रीतिसे जब निपातोंका वाचकत्व पक्ष है तब 'स्यात्' इस शब्दकी अनेकान्त सामान्यरूप अर्थके कथनमें शक्ति विशेष है, न कि एकान्तरूप अर्थक अथवा अनेकान्त विशेषरूप अर्थके कहनेमें शक्ति है । और निपातोंके द्योतकत्व पक्षमें स्यात् शब्दकी अनेकान्तरूप अर्थके ज्ञापन करनेमें शक्ति विशेष है, न कि अन्य किसी अर्थके द्योतित करनेमें, इस रीतिसे कथन और सूचनरूप सामर्थ्यके सिवाय और गौ पशुका मांस पिंडरूप अर्थ वाच्य है दूसरे पृथिवी आदि अर्थरूप वाच्यका वाचक दूसरा ही गो शब्द समझा जाता है अत एव वाच्य वाचक नियमका निर्वाह होता है. १ सत्त्व असत्त्व एतदुभयरूप अर्थ कहनेकी शक्ति. २ अभिधा अथवा वाचकता शक्ति. ३ लक्षण वा द्योतकतारूपसे पदार्थके सूचनकी शक्ति. ४ निपातोंकी वाचकता तथा द्योतकता दोनों पक्ष सिद्ध कर चुके हैं. ५ एक प्रकारका सामर्थ्य. For Private And Personal Use Only
SR No.020654
Book TitleSaptabhangi Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
PublisherNirnaysagar Yantralaya Mumbai
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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