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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अत्र चिन्त्यते-कुतस्स्यादस्तीत्यादिवाक्यं प्रत्येकं विकलादेशः ? अब यहांपर विचार करते हैं कि किस कारणसे 'स्यादस्ति' इत्यादि सप्तप्रकारका वाक्य भेद एक २ भेद विकलादेश है ॥ ननु-सकलार्थप्रतिपादकत्वाभावाद्विकलादेश इति चेन्न । तादृशवाक्यसप्तकस्यापि विकलादेशत्वापत्तेः, समुदितस्यापि सदादिवाक्यसप्तकस्य सकलार्थप्रतिपादकत्वाभावात्; सकलश्रुतस्यैव सकलार्थप्रतिपादकत्वात् ।। __कदाचित् ऐसा कहो कि एक २ पृथक् बाक्य सम्पूर्ण अर्थोंका प्रतिपादक नहीं है इस लिये विकलादेश है सो ऐसा भी नहीं कह सकते । क्योंकि ऐसा माननेसे उस प्रकारके सातों वाक्य भी विकलादेश हो जायगे । 'स्यादस्ति' सत्त्व आदि सातों वाक्य मिलकर भी सम्पूर्ण अर्थोंके प्रतिपादक सिद्ध नहीं हो सकते । क्योंकि सकलश्रुतज्ञान ही सम्पूर्ण अर्थोंका प्रतिपादक है ॥ __एतेन सकलार्थप्रतिपादकत्वात्सप्तभङ्गीवाक्यं समुदितं सकलादेशः, इति निरस्तम् ; समुदितस्यापि तस्य सकलार्थप्रतिपादकत्वासिद्धेः, सदादिसप्तवाक्येन एकानेकादि सप्तवाक्यप्रतिपाद्यधर्माणामप्रतिपादनात् । इसीसे सम्पूर्ण अर्थोंका प्रतिपादक होनेसे मिलित सप्तभङ्गी वाक्य समुदाय सकलादेश है, यह मत परास्त हो गया क्योंकि मिलित भी सप्तभङ्गी वाक्यकी सम्पूर्ण अर्थोंकी प्रतिपादकता असिद्ध है । सत्त्व असत्त्व आदि सप्तवाक्योंसे एक तथा अनेक आदि सप्तवाक्य प्रतिपाद्य धर्मोंका प्रतिपादन नहीं होता ॥ __सिद्धान्तविदस्तु एकधर्मबोधनमुखेन तदात्मकानेकाशेषधर्मात्मकवस्तुविषयक बोधजनकवाक्यत्वम् सकलादेशत्वम् । तदुक्तम् । 'एकगुणमुखेनाशेषवस्तु रूपसङ्ग्रहात्सकलादेशः' इति । और सिद्धान्तवेत्ता अर्थात् सिद्धान्तके जाननेवाले तो ऐसा कहते हैं कि एक धर्मके बोधेनके मुँखसे उसको आदि लेके सम्पूर्ण जो धर्म हैं उन सब धर्मखरूप जो वस्तु तादृश वस्तुविषयक बोधैंजनक जो वाक्य है उसको सकलादेश कहते हैं । इसी वातको अन्य आचार्योंने भी कहा है. वस्तुके एक धर्मकेद्वारा शेष सब वस्तुके स्वरूपोंका संग्रह करनेसे सकलादेश कहलाता है ॥ तस्यार्थः-यदा-अभिन्नं वस्तु एकगुणरूपेणोच्यते । गुणिनां गुणरूपमन्तरेण विशेषप्रतिपत्तेरसम्भवात् ; तदा सकलादेशः, एको हि जीवोऽस्तित्वादिष्वेकस्य गुणस्य रूपेण अभेदवृत्त्या, अभेदोपचारेण वा, निरंशस्समस्तो वक्तुमिष्यते, विभागनिमित्तस्य तत्प्रतियोगिनो गुणान्तरस्याविवक्षितत्वात् । कथमभेदवृत्तिः ? कथं चाऽभेदोपचारः ? इति चेत् । द्रव्यार्थत्वेनाश्रयणे तव्यतिरेकादभेदवृत्तिः, पर्यायार्थत्वेनाश्रयणे परस्परव्यतिकरेऽप्येकत्वाध्यारोपादभे १ कहनेवाला. २ खण्डित. ३ कथनेके योग्य. ४ कथन. ५ जनाने. ६ द्वार. ७ ज्ञानकरानेवाला. ८ बाकी. For Private And Personal Use Only
SR No.020654
Book TitleSaptabhangi Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
PublisherNirnaysagar Yantralaya Mumbai
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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