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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir होता है न कि पृथक्कारक अवच्छेदक धर्मशून्य केवल धर्मीमात्रका । ऐसे ही 'अस्ति' शब्दसे जिस किसी धर्मीमें वृत्तित्वरूपसे विशेषित ही विशेषणता वा वृत्तिता सम्बन्धसे अन्वित अस्तित्व धर्मका कथन होता है न कि धर्मी अन्वित हुये विना केवल धर्ममात्रका भान होता है, इस विषयमें सब विद्वानोंका अनुभव ही साक्षी है ॥ __ न चैवं-द्रव्यशब्दस्य भावशब्दस्य च विभागानुपपत्तिरितिवाच्यम् ;-यतो मुख्यतया द्रव्यप्रतिपादकशब्दो द्रव्यशब्दः, यथा जीवशब्दः; जीवशब्देन हि जीवत्वरूप धर्मो गौणतया प्रतिपाद्यते-जीवद्रव्यं मुख्यतया । एवं मुख्यतया धर्मप्रतिपादकशब्दो भावशब्दः, यथाअस्त्यादिशब्दः, तेन हि-अस्तित्वरूप धर्मस्य मुख्यतया प्रतिपादनम् , धर्मिणश्च गौणतया इति द्रव्यभावशब्दयोर्विभाग उपपद्यत इति ॥ कदाचित् यह कहो कि यदि धर्मी तथा धर्मका पृथक् भान नहीं होता तब द्रव्यवाचक शब्द तथा भाववाचक शब्दोंके विभागकी अनुपपत्ति होगी. सो यह भी नहीं कह सकते क्योंकि प्रधानतासे द्रव्यका वाचक जो शब्द है उसको द्रव्य शब्द कहते हैं. जैसे जीव शब्द 'जीवः' यहांपर जीव शब्दसे जीवत्वरूपधर्म तो गौणतासे प्रतिपादित होता है। इसी प्रकार मुख्यतासे धर्मप्रतिपादक जो शब्द है उसको भावशब्द कहते हैं. जैसे अस्ति आदि शब्द । यहांपर 'अस्ति' इस शब्दसे मुख्यतासे अस्तित्वरूप धर्मका प्रतिपादन होता है और जीव आदि धर्मीका गौणतासे । इस प्रकारसे द्रव्य तथा भाववाचक शब्दोंका विभाग उत्पन्न होता है । __ यदपि-पाचकोऽयमिति द्रव्यशब्दः, पाचकत्वमस्येति भावशब्दः, इति द्रव्यभावशब्दयोर्विभागनिरूपणम् ; तदपि न सङ्गच्छते । पाचकशब्देनापि पाचकत्वधर्मविशिष्टस्यैव पुरुषस्याभिधानात् ; पाचकत्वमित्यनेनापि पाचकवृत्तित्वविशेषितस्यैव धर्मस्य बोधनात् ;-इति ॥ __ और जो ऐसा कहते हैं 'पाचकोऽयम्' यह रोटी पकानेवाला. यह द्रव्यवाचक शब्द है और 'पाचकत्वं अस्य' इसका पाचकपना, यह भाववाचक शब्द है. इस प्रकार द्रव्यवाचक तथा भाववाचक शब्दोंके विभागका निरूपण होता है । सो यह कथन भी उनका युक्तिसे संगत नहीं है । क्योंकि पाचक ऐसा कहनेसे पाचकत्वधर्मसहित ही पुरुषका कथन होता है और 'पाचकत्व' इस शब्दसे पाचकमें वृत्तित्व सम्बन्धसे विशेषित धर्मका ही कथन होता है ।। __ अपरे तु-स्यादस्तीत्यादिवाक्यं सप्तविधमपि प्रत्येकं विकलादेशः, समुदितं सकलादेशः, इति वदन्ति । __और अन्य ऐसा कहते हैं कि 'स्यादस्ति स्यानास्ति' इत्यादि सप्तप्रकारका जो वाक्यभेद है, वह प्रत्येक तो विकलादेश है और सातों वाक्य मिलकर सकलादेश है ॥ १ सत्त्व. २ असिद्धि. ३ अप्रधानतासे. ४ कहा जाता है. ५ धर्मवाचक. ६ सत्त्व. ७ कथन. ८ युक्त. युक्त. १० विशेषणरूपताको प्राप्त. For Private And Personal Use Only
SR No.020654
Book TitleSaptabhangi Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
PublisherNirnaysagar Yantralaya Mumbai
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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