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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रातिहाऱ्यादि लक्ष्मी और गर्भ निवासादि पञ्च मंगल समयमें इन्द्रोंके आसनोंकी कम्पन आदि श्रीयुक्त महावीरस्वामीको नमस्कार करके कुतूहल अर्थात् अनायासही (विनापरिश्रमके) इस सप्तभङ्गितरङ्गिणी नाम ग्रन्थको अर्थात् स्यादस्ति स्यान्नास्ति इत्यादि सप्त भेद प्रतिपादक तर्कशास्त्रको रचता हूं ॥ जबतक सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान तथा सम्यक्चारित्रकी प्राप्ति नहीं होती तबतक प्राणी अनादिकालसे प्रवृत्त इस संसारमें कर्मोके बन्धनसे मुक्त होकर मुक्तिरूप सुखको कदापि नहीं प्राप्त होता और इनकी प्राप्ति जीव आदि तत्त्वोंके पूर्ण ज्ञानसे होती है. इसी हेतुसे भगवान् सूत्रकारने तत्त्वार्थज्ञतके उपायके प्रतिपादनकी इच्छासे "प्रमाणनयैरधिगमः" यह सूत्र कहा है. अर्थात् सम्यग्दर्शनादिक तथा नाम स्थापना द्रव्य आदि विधिसे निक्षिप्त जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा, तथा मोक्षरूप तत्त्वार्थोंका अधिगम, प्रमाण तथा नयसेही होता है. इस सूत्रमें जो अधिगम कहा है वह दो प्रकारका है । एक स्वार्थ अधिगम दूसरा परार्थ अधिगम. इनमें मतिश्रुत आदिरूप ज्ञानात्मक अधिगमको स्वाधिगम कहते हैं और शब्दात्मक अर्थात् वचनरूप अधिगमको परार्थाधिगम कहते हैं। और पुनः वह अधिगम प्रमाणरूप तथा नयरूप इन दो भागोंमें विभक्त है । इनमेंसे सम्पूर्ण रूपसे तत्त्वार्थाधिगम जिसकेद्वारा होता है उसको प्रमाणात्मक कहते हैं। और एक देशसे जिसकेद्वारा तत्त्वार्थाधिगम होता है उसको नयात्मक कहते हैं। पुनः विधि तथा निषेधकी प्रधानतासे ये दोनो भेर्दै सप्तभङ्गमें विभक्त हैं । इसी सप्त विभाग समूहको प्रमाणसप्तभङ्गी और नयसप्तभङ्गी भी कहते हैं. क्योंकि 'सप्तानां भङ्गानां वाक्यानां समाहारः समूहः सप्तभङ्गी' अर्थात् सप्त भङ्गोंका जो समूह है उसका नाम सप्तभङ्गी है. इस प्रकार सप्तभङ्गी शब्दका व्याकरणकी रीतिसे अर्थ होता है. जैसे 'त्रयाणां लोकानां समाहारः त्रिलोकी' अष्टानां सहस्राणां समाहारः अष्टसहस्री । अर्थात् तीन लोकोंका जो समूह उसको त्रिलोकी, और अष्ट सहस्रोंका जो समूह है उसको अष्टसहस्री कहते हैं । ऐसे ही सप्तभङ्गोंके समूहको सप्तभङ्गी कहते हैं । इन सप्तभङ्गोंका विभाग इस प्रकार है। " स्यादस्त्येव घटः ॥१॥ स्यान्नास्त्येव घटः ॥ २॥ स्यादस्ति नास्ति च घटः ॥ ३ ॥ स्यादवक्तव्य एव ॥४॥ स्यादस्ति चावक्तव्यश्च ॥५॥ स्यान्नास्ति चावक्तव्यश्च ॥ ६॥ स्यादस्ति नास्ति चावक्तव्यश्च ॥७॥” इति एतत्सप्तवाक्यसमुदायः सप्तभङ्गीति कथ्यते । स्यादस्ति घटः कथंचित् घट है ॥ १॥ स्यान्नास्ति घटः कथंचित् घट नहीं है ॥२॥ १ लक्ष्मी वा ऐश्वर्य्यसहित अन्तिमतीर्थकरको. २ महातत्त्वार्थ सूत्र. अध्याय १ सूत्र ६. ३ ज्ञान. ४ प्रमाण तथा नयरूप. ५ सात. ६ वाक्योंका. ७ आठ. For Private And Personal Use Only
SR No.020654
Book TitleSaptabhangi Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
PublisherNirnaysagar Yantralaya Mumbai
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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