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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यवहारपदन्यास- इस ग्रंथ में व्यवहारावलोकनधर्म, प्राड्विवाकधर्म, सभालक्षण, सभ्यलक्षण, सभ्योपदेश, व्यवहारस्वरूप, विचारविधि एवं भाषानिरूपण नामक 8 विषयों पर विवेचन है। व्यवहारपरिभाषा- हरिदत्त मिश्र। व्यवहारप्रकाश- ले.- हरिराम । 2) ले.- मित्रमिश्र (लेखक के वीरमित्रोदय का अंश) 3) ले.- शरभोजी, तंजौर के राजा। ई. 1798-1833 । व्यवहारप्रदीप- ले.- पद्मनाभ । विषय- मुहूर्तशास्त्र । 2) ले.- कृष्ण। विषय-धर्मशास्त्र से संबंधित ज्योतिष । व्यवहारप्रदीपिका- ले.- हरपति। ई. 15 वीं शती। पिताविद्यापति। व्यासप्रभाकर- ले.- कपिल । (सांख्यसूत्रकार से भिन्न व्यक्तित्व) व्यवहारमयूख- (या न्यायमातृका) ले.- जीमूतवाहन। व्यवहारमाधव- पराशरमाधवीय का तृतीय भाग। व्यवहारमाला- ले. वरदराज। ई. 18 वीं शती। यह ग्रंथ मलबार में अधिक प्रयुक्त था। व्यवहाररत्नम्- ले.- भानुनाथ देवज्ञ। भोआलवंशज चन्दनानन्द के पुत्र । व्यवहाररत्नाकर - ले.- चण्डेश्वर । व्यवहारशिरोमणि - ले.- नारायण। विज्ञानेश्वर के शिष्य । व्यवहारसमुच्चय - ले.- हरिगण। व्यवहारसर्वस्वम् - ले.-सर्वेश्वर। विश्वेश्वर दीक्षित के पुत्र । व्यवहारसार - ले.- मयाराम मिश्र। व्यवहारसारसंग्रह - ले.- नारायणशर्मा । 2) ले.- रामनाथ। व्यवहारसारोद्धार - ले.-मधुसूदन गोस्वामी। लाहोर के रणजितसिंह के राज्यकाल में प्रणीत (सन् 1799 ई. में) व्यवहारसिद्धान्तपीयूषम्- ले.- चित्रपति । पिता- नन्दीपति । सन् 1804 में कोलबुक के अनुरोध पर लिखित । इस पर लेखक की टीका भी है। व्यवहारसौख्यम्- टोडरानन्द का एक अंश। व्यवहारांगस्मृतिसर्वस्वम् - ले.- मयाराम मिश्र गौड । वाराणसी-निवासी। विषय- न्यायाविधि एवं व्यवहारपद । जयसिंह के आदेशपर लिखित। व्यवहारादर्श - ले.- चक्रपाणि मिश्र। ई. 19 वीं शती। विषय- भोजनविधि, अभोज्यान आदि। व्यवहारालोक- ले.- गोपाल सिद्धान्तवागीश। व्यवहारार्थ-स्मृति-सारसमुच्चय- ले.- शरभोजी। तंजौर के अधिपति। ई. 18-19 वीं शती । व्यवहारोच्चय- ले.- सुरेश्वर उपाध्याय। ई. 15 वीं शती। व्याकरणकौमुदी-ले.- बलदेव विद्याभूषण । ई. 18 वीं शती। व्याकरणग्रंथावली- सन 1914 में तंजौर से श्रीवत्स चक्रवर्ती रायपेट्टे कृष्णंमाचार्य (अभिनव भट्टबाण) के सम्पादकत्व में इस मासिक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ। इस का वार्षिक मूल्य पांच रु, था। प्रकाशन स्थल- श्री मुनित्रय मंदिर, 66, वेल्लाल स्ट्रीट वेलूर था। व्याकरणदीपिका-ले.- गौरभट्ट । यह अष्टाध्यायी की वृत्ति है। व्याकरणसर्वस्वम्- ले.- धरणीधर । ई. 11 वीं शती। व्याकरणसिद्धांतसुधानिधि- ले.- विश्वेश्वर पाण्डेय। पटिया। (अलमोडा जिला) ग्राम के निवासी। ई. 14 वीं शती। यह अष्टाध्यायी की टीका है, जिसके केवल प्रथम तीन अध्याय उपलब्ध है। व्याख्यानम्- ले.- नृसिंह । वरदराज कृत प्रक्रियाकौमुदी-विवरण पर यह टीका है। व्याख्यानन्दम्- -ले.- रामचंद्र शर्मा । भट्टिकाव्य पर व्याख्या। व्याख्याप्रज्ञप्ति-ले.- अमितगति । जैनाचार्य । ई. 10 वीं शती। व्याख्याबृहस्पति- ले.- बृहस्पति मिश्र। (रायमुकुट) ई. 15 वीं शती। रघुवंश की व्याख्या । 2) इसी लेखक की कुमारसंभवपर टीका। व्याख्या- मधुकोश- ले.- विजयरक्षित । ई. 13 वीं शती। माधवकृत निदानग्रंथ पर व्याख्या। विषय- आयुर्वेद । व्याख्याव्यूह - ले.- रुद्रराम। व्याघ्रस्मृति (या व्याघ्रपादस्मृति- मिताक्षरा (याज्ञ. 3/30) अपरार्क, हरदत्त द्वारा उल्लिखित ! व्याघ्रालयेशशतकम् - ले.-त्रावणकोर नरेश केरलवर्मा । व्याप्तिचर्चा - ले.- ज्ञानश्री। ई. 14 वीं शती। बौद्धाचार्य । व्याप्तिरहस्यटीका - ले.- महादेव उत्तमकर। महाराष्ट्रीय । व्याप्तिवादव्याख्या - ले.-रामरुद्र तर्कवागीश। व्यासतात्पर्यनिर्णय - ले.- वाणी अण्णय्या। आन्ध्रवासी। व्यासस्मृति - ले.- जीवानन्द । आनन्दाश्रम द्वारा मुद्रित । लगभग 248 श्लोक। टीका-कृष्णनाथ द्वारा । व्युत्पत्तिवाद - ले.-गदाधर भट्टाचार्य । व्योमवती- टीकाग्रंथ । ले.- व्योमशिवाचार्य । ई. 17 वीं शती। व्हिक्टोरिया-चरितसंग्रह- ले.- केरलवर्म वलियक्वैल । व्हिक्टोरिया विजयपत्रम्- ले.- बलदेवसिंह । वाराणसी-निवासी। सन् 1889 में लिखित। व्हिोक्टोरियाप्रशस्ति - ले.- वज्रनाथ शास्त्री । पुणे- निवासी। 2) ले.- मुडुम्बी नरसिंहचार्य। व्हिक्टोरिया-महात्म्यम् - ले.- राजा सर सुरेन्द्रमोहन टैगोर। सन् 356/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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