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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 70 विषयों का विशद वर्णन इस ग्रंथ में है। इस पर संस्कृत तथा तिब्बती भाषाओं में 21 टीकाएं उपलब्ध हैं। इसकी कारिकाएं अत्यंत संक्षिप्त होने से ग्रंथ अधिक दुरूह तथा जटिल हुआ है। अभेदकारिका (अभेदार्थकारिका) - ले. सिद्धनाथ। विषयकाश्मीरी शैव मत। अभेदानन्द - ले. डॉ. रमा चौधुरी, कलकत्ता निवासिनी। विषय- रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य स्वामी अभेदानन्द का चरित्र । यह चरित्र प्रस्तुत रूपक में 12 दृश्यों में वर्णित किया है। अमनस्क-योगशास्त्र - ईश्वर-वामदेव संवाद रूप। इसकी एक प्रति स्वयंबोध के नाम से अभिहित है, जो शिवरहस्य का एक भाग कहा गया है। इसके कुल दो अध्यायों में लययोग और तत्त्वज्ञान का निरूपण है। अमर-कामधेनु - ले. सुभूतिचन्द्र (ई. 12 वीं शती) अमरसिंह के नामलिंगानुशासन पर टीका। सतीशचन्द्र विद्याभूषण द्वारा इसका तिब्बती अनुवाद अंशतः प्रकाशित हुआ है। अमरकोश - अमरसिंह द्वारा ई. 11 वीं शती में रचित । अत्यंत लोकप्रिय संस्कृत शब्दकोश। रचना मूलतः अनुष्टुभ् छंद में तीन कांडों में है शब्दसंख्या दस हजार। इसे त्रिकांड कोश एवं नाम-लिंगानुशासन भी कहते हैं। प्रत्येक कांड का विभाजन विषयानुसार वर्गों में किया है। कुल वर्गसंख्या 24 है। भारत के अर्थमंत्री चिंतामणराव देशमुख द्वारा लिखित इसका अंग्रेजी भाष्य सन् 1981 में प्रकाशित हुआ। अमरकोशपरिशिष्टमः - ले. पुरुषोत्तम देव। ई. 12 वीं अथवा 13 वीं शती। अमरकोशोद्घाटनम् - ले. क्षीरस्वाती। ई. 12 वीं शती। पिता- ईश्वरस्वामी। यह अमरकोश की व्याख्या है। अमर-टीका - ले. गोपाल चक्रवर्ती। (ई. 17 वीं शती)। अमरटीका - ले. भट्टोजी दीक्षित । पाण्डुलिपि मद्रास से सुरक्षित। अमरनाथपटलम् - भृङगीशसंहिता के अन्तर्गत । इसमें अमरनाथ की तीर्थयात्रा का माहात्म्य वर्णित है। पटल संख्या- 111 अमरभारती - सन् 1910 में त्रिवेन्द्रम से कुट्टयोटि आर्य शर्मा के सम्पादकत्व में इस पाक्षिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ । हुआ। अर्थाभाव के कारण यह अधिक समय तक प्रकाशित नहीं हो सकी। अमरभारती - सन 1934 में शासकीय संस्कृत कॉलेज बनारस की मुख्य पत्रिका के रूप में महामहोपाध्याय नारायणशास्त्री के संपादकत्व में इस पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इसका वार्षिक मूल्य तीन रु. था। यह पत्रिका तीन वर्षों तक ही निकल पायी। ‘पद्यवाणी' पत्रिका के अनुसार इसमें संस्कृत साहित्य, दर्शन आदि विषयों पर गंभीर निबंधों का प्रकाशन हुआ करता था। अमरभारती - सन् 1944 में संस्कृत विद्यामंदिर,बासफाटक काशी से पं. कालीप्रसाद शास्त्री के संपादकत्व में इस पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ जो लगभग एक वर्ष बाद बंद हो गया। संस्कत को राष्ट्रभाषा बनाये जाने का प्रबल समर्थन इस पत्रिका ने किया। इसमें प्रख्यात विद्वानों की रचनाएं प्रकाशित होती थीं। अमरमंगलम् - तर्कपंचानन भट्टाचार्य (जन्म- 1866) वाराणसी से सन् 1937 में प्रकाशित इस नाटक का प्रथम अभिनय भट्टपल्ली (भाटपाडा) में महासारस्वत उत्सव के अवसर पर हुआ। अंकसंख्या आठ। कर्नल टॉड लिखित "एनल्स ऑफ राजस्थान" पर आधारित। लोकोक्तियों का सुचारुप्रयोग, भाषा नाट्योचित, एवं रसप्रवण गीतों का समावेश और लम्बे संवाद तथा एकोक्तियां इस नाटक की विशेषताएं हैं। कथासार :राजसिंह राठौर अपनी पुत्री वीरा का विवाह यवनराज से कराना चाहता है, परन्तु महारानी रक्षकों के साथ उसे मेवाड भेजती है। मेवाड के युवराज अमरसिंह उस पर लुब्ध है। मानसिंह अमर के विनाश हेतु षड्यन्त्र रचता है। झालापति का पुत्र पानी में डूब मरा था। परन्तु ज्योतिषी ने बताया की वह जीवित है। इसका लाभ उठा कर मानसिंह अपने गुप्तचर दुर्जनसिंह को झालापति का खोया पुत्र समरसिंह बतला कर, अमरसिंह से उसकी मित्रता करता है। वह एक वेश्या को क्षत्रिय कन्या के रूप में अमरसिंह के पास भेजता है, और उसे चित्तोड की रक्षा सौंप कर अमरसिंह का अन्त कराना चाहता है। यदि वह मरता नहीं तो विलासप्रवण बने, यही उसकी चाल है। परन्तु अमरसिंह के सम्पर्क में उस वेश्या का ही हृदय-परिवर्तन होता है। अमर की प्रतिज्ञा है कि चित्तोड जीते बिना वह विवाह नहीं करेगा परन्तु अन्य सामन्त सहमत नहीं होते। मानसिंह की प्रतिज्ञा है कि अमरसिंह को मुगलराज के कदमों में झुकाकर ही दम लेगा। अमरसिंह भीलों की सेना इकठ्ठा करता है, समरसिंह की पोल खुलती है। तब सामन्त भी उसका साथ देते हैं और मेवाड की विजय होती है। अमरसिंह का राज्याभिषेक होता है और वीरा के साथ विवाह भी। अमरमार्कण्डेयम् - ले. शंकरलाल । रचनाकाल लगभग 1915 ई। प्रथम अभिनय राजराजेश्वर मन्दिर में, शिवरात्रि महोत्सव में। अंकसंख्या- पांच। सन 1933 में लेखक के पुत्र द्वारा प्रकाशित। काशी के विश्वनाथ पुस्तकालय में प्राप्य। प्राकृत का प्रयोग नहीं। गद्योचित स्थलों पर भी पद्यों का प्रयोग। अनुप्रास की प्रचुरता। छाया तत्त्व की अतिशयता। करुणा, भय मनस्ताप आदि भावनाएं तथा राजयक्ष्मा, ज्वर आदि रोग पात्रों के रूप में। पात्रों में देवता, देवर्षि महिषारूढ यम आदि इस नाटक की विशेषएं हैं। कथासार :- मुनि मृकण्ड तथा उनकी पत्नी विशालाक्षी संतानहीनता के कारण दुखी है। वे 14 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड : For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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