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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir की परंपरा व अभिनय-विधि का वर्णन तथा अभिनय के 3 भेद बताये गए है- नाट्य, नृत्त व नृत्य, और तीनों के प्रयोग-काल का भी इसमें निर्देश है। इसमें नाट्य के 6 तत्त्व कहे गए हैं- नृत्य, गीत अभिनय, भाव, रस व ताल। इसमें अभिनय के 4 प्रकार बताये गये हैं- आंगिक, वाचिक, आहार्य और सात्त्विक। इसमें मुख्य रूप से 16 प्रकार के अभिनय व उनके भेदों का वर्णन है और अभिनय-काल व 13 हस्त-मुद्राओं का उल्लेख है। हस्त-गति की भांति इसमें पाद-गति का भी वर्णन है और उसके भी 13 प्रकार बताये गये हैं। शास्त्र एवं लोक दोनों के ही विचार से प्रस्तुत ग्रंथ एक उत्कृष्ट कृति है। भरतनाट्य शास्त्र के पूर्व लिखित यह एक उत्तम ग्रंथ है। इसका अंग्रेजी अनुवाद डॉ. मनमोहन घोष ने। तथा हिंदी अनुवाद श्रीवाचस्पति गेरौला ने किया है। अभिनवभारतम्ः - नरसय्या मंत्री। अभिनव-रागमंजरी - 1) ले. जीवरामोपाध्याय। (2) ले.विष्णु नारायणभातखंडे। अभिनव-राघवम् (नाटक) - ले. सुन्दरवीर रघूद्वह। ई. 19 वीं शती का प्रथम चरण। हस्तलिखित प्रति सागर वि.वि. के पुस्तकालय में प्राप्य। इसका प्रथम अभिनय रंगनगरी में रंगनाथ देवालय के प्रांगण में चैत्रयात्रा महोत्सव के अवसर पर हुआ। अंकसंख्या आठ। प्रमुख रस शृंगार। हास्य रस गौण। माया-पात्रों की बहुलता। सारण, दारण, चण्डोदरी, कुण्डोदरी, लवणासुर, शूर्पणखा, अयोमुखी, पद्मावती इत्यादि अनेक पात्र वेष बदलकर प्रस्तुत होते हैं। नायक को तिरोहित रखकर अन्य पात्रों के संवाद का प्रमाण अधिक है। नाटक पठनीय है किन्तु प्रयोगक्षम नहीं। रामायण के मूल कथानक में अधिक परिवर्तन हआ है। काल्पनिक प्रसंगों की भरमार है। मायापात्रों की प्रचुरता के कारण कथानक में जटिलता प्रतीत होती है। अभिनव-राघवम् - ले. क्षीरस्वामी। अमरकोश-टीका क्षीरतरंगिणी के लेखक क्षीरस्वामी ही इसके लेखक हैं या नहीं यह विवाद्य विषय है। अभिनव-रामायण-चम्पू - ले. लक्ष्मणदान्त । अभिनव-लक्ष्मी-सहस्रनाम (स्तोत्रम्)- ले. व्ही. रामानुजाचार्य। अभिनव-शारीरस् - पं. दामोदर शर्मा गौड । वाराणसीनिवासी। बैद्यनाथ आयुर्वेद प्रतिष्ठान का प्रकाशन। (ई. 1975)। अभिप्राय-प्रकाशिका- चित्सुखाचार्य। ई. 13 वीं शती। अभिराममणि - ले. सुन्दर मिश्र। रचनाकाल 1599 ई.। सात अंकों के इस नाटक में राम की कथा वर्णित है। प्रथम अभिनय जगन्नाथपुरी में पुरुषोत्तम विष्णु के महोत्सव के अवसर पर हुआ था। अभिलषितार्थचिंतामणि - 12 वीं शताब्दी में निर्माण हुआ यह एक ज्ञानकोश है। इसका दूसरा नाम है मानसोल्लास । विश्व का यह प्रथम ज्ञानकोश है। वस्त्राभोग, पुत्रोपभोग, अन्नभोग, आलेख्यकर्म, नृपगेह, आस्थाभोग, राष्ट्रपालन आदि विषय इसमें हैं। विक्रमांक देव के पुत्र सोमेश्वर ने 1126 में सिंहासनाधिष्ठित होने के पश्चात् विद्वानों के सहयोग से इसकी रचना की। अभिषेकनाटकम् - ले. महाकवि भास। :- रामकथा पर आधारित इस नाटक के प्रथम अंक में सुग्रीव और बालि का युद्ध है। राम छिप कर बालि को मारते हैं। सुग्रीव के राज्याभिषेक की सिद्धता होती है। द्वितीय अंक में अशोक वाटिका में सीता और हनुमान का संवाद है। हनुमान सीता को आश्वस्त कर त्रिकूट वन में जाता है। तृतीय अंक में अक्षकुमार का वध करने पर हनुमान की पूंछ को रावण की आज्ञा से आग लगा दी जाती है। बिभीषण भी रावण से अपमानित होने पर राम की शरण में जाता है। चतुर्थ अंक में शरणागत बिभीषण को राम आश्रय देते हैं। राम समुद्र पार कर सुवेल पर्वत पर शिबिर बनाकर रावण के पास युद्ध का संदेश भेज देते हैं। पंचम अंक में युद्ध में कुम्भकर्ण का वध होता है। रावण, राम और लक्ष्मण के शिरों की मायावी प्रतिकृतियों से सीता को आत्मसमर्पण करने का बाध्य करता है, इंद्रजित् के मारे जाने के समाचार से कुद्ध होकर रावण युद्ध भूमि पर जाता है। षष्ठ अंक में रावण वध के उपरान्त बिभीषण का राज्याभिषेक और सीता की अग्निदेव द्वारा शुद्धता सिद्ध करने पर राम का राज्याभिषेक। इस नाटक में अर्थोपक्षेपकों की कुल संख्या 12 है जिनमें 4 विष्कम्भक 7 चूलिकाएं तथा 6 अंकास्य हैं। इस नाटक में सुग्रीव, बिभीषण और श्रीराम के अभिषेकों का वर्णन है। अंतिम अभिषेक श्रीराम का है और वही नाटक का फल भी है। रामायण की कथा को सजाने एवं संवारने में कवि ने अपनी मौलिकता व कौशल्य का परिचय दिया है। बालि-वध को न्याय्यरूप देने तथा समद्र द्वारा मार्ग देने के वर्णन में नवीनता है। इसी प्रकार जटायु से समाचार जानकर हनुमान द्वारा समुद्रमंतरण करने तथा राम-रावण के युद्ध वर्णन में भी नवीनता प्रदर्शित की गई है। पात्रों के कथोपकथन छोटे एवं सरल वाक्यों में हैं जो प्रभावशाली हैं। इस नाटक में वीररस की प्रधानता है पर यत्र-तत्र करुण रस भी अनुस्यूत है। अभिषेकपद्धति - श्लोक 1701 विषयः मालासंस्कार, कवचसंस्कार, शाक्ताभिषेक और पूर्णाभिषेक की विधि इत्यादि । अभिसमयालंकार-कारिका - अन्य नाम अभिसमयालंकार और प्रज्ञापारमितोपदेश शास्त्र है। लेखक- मैत्रेयनाथ । विषयप्रज्ञापारिमिता का वर्णन, अर्थात् तथागत को जिस मार्ग से निर्वाण की प्राप्ति हुई, उसका विवेचन। सात परिच्छेद तथा संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड/13 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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