SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 304
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निरोगीका ही योग में अधिकार है यह प्रतिपादन करते हुए। व्याधियों के विनाशक तृष्णानाश, अनाहारीकरण, मल-मूत्र विनाशन, शुक्रस्तंभन, आलस्यशमन, निद्रानिवृत्ति, इन्द्रियों का निग्रह, मंत्रसिद्धि, इष्टविद्याओं के मंत्र, पुरश्चरणविधि, भक्ष्य, अभक्ष्य, आसन, जपमाला, जप की गणना, चक्र-वर्णमाला, त्रिविध योग,शरीरस्थ चक्र, षट्चक्र के देवताओं के ध्यान, पूजा इ.। (2) शिव-पार्वती संवाद रूप। परिच्छेद-11। विषययोगियों द्वारा सम्पादनीय बहुत सी विधियां, शरीरस्थित षट् चक्र, दर्शनोद्दीपन, मूलाधारस्थित देवता, बाणलिंगोपाख्यान, हृदयकमल के ध्यान, पूजन आदि। (3) ले.- हरिशंकर । पिता- श्री लक्ष्मण ज्योतिर्विद । विषय- प्रथम अध्याय में गुरु के महत्त्व का वर्णन और द्वितीय में कुम्भक का वर्णन। (4) ले.- गंगानन्द। योगसारप्राभृतम् - ले.- अमितगति (प्रथम)। जैनाचार्य। ई.. 9 वीं शताब्दी। योगसारसंग्रह - ले.- विश्वास भिक्षु-काशी निवासी । ई. 14 श.। योगसारसमुच्चय (नामान्तर- अकुलागममहातंत्र) - शिव-पार्वती-संवादरूप। पटल 101 योगसिद्धान्त - विष्णु-शिव संवादरुप। श्लोक- 180/ योगसिद्धान्तमंजरी - ले.- काशीनाथ। पिता- जयरामभट्ट। श्लोक- 1501 विषय- शैवयोग। योगाचारभूमिशास्त्रम् (सप्तदश भूमिशास्त्र) - ले.-आर्य असंग। बौद्धदार्शनिक वसुबंधु के ज्योष्ठ भ्राता। योगाचार के साधन मार्ग का प्रामाणिक विवेचन करने वाला बृहग्रंथ। इसी रचना से विज्ञानवाद को "योगाचार" संज्ञा मिली। 17 परिच्छेद । प्रत्येक परिच्छेद को भूमि संज्ञा है। स्व. राहुल सांकृत्यायन के परिश्रम से मूल संस्कृत में रचना उपलब्ध हुई। संस्कृत में । प्रकाशित इसका लघु अंश "बोधिसत्त्वभूमि" उपलब्ध है। इसका संक्षेपीकरण कर उसकी व्याख्या सी.वेण्डल पोसिन आदि ने की है। इसमें 17 भूमि (या परिच्छेद) हैं जिनके नाम हैं : विज्ञानभूमि, मनोभूमि, सवितर्क-सविचारा भूमि, अवितर्क-विचारमात्रा भूमि, अवितर्क-अविचारा भूमि, समाहिता भूमि, असमाहिता भूमि, सचित्तकाभूमि, अचित्तका भूमि, श्रुतमयी भूमि, चिंतामयी भूमि, भावनामयी भूमि, श्रावकभूमि, व्रत्येकबुद्धभूमि, बोधिसत्वभूमि, सोपधिकाभूमि और निरुपधिकाभूमि। योगामृतम् - ले.-गोपाल सेन कविराज। ई. 17 वीं शती।। वैद्यक विषयक रचना। योगार्णव (नामान्तर-योगसारसंग्रह) - ले.- दामोदराचार्य । श्लोक 3301 (2) ले.- हरिशंकर। लेखक ने इसकी रचना काशीराम के प्रबोधनार्थ की। योगावलीतंत्रम् - हर-गौरी संवाद रूप। श्लोक- 2721 पटल-51 विषय-देहोत्पत्ति का निर्वचन करते हुए योग आदि का निरूपण। योगिनीचक्रपूजन - श्लोक- 200। योगिनीतंत्रम् (1) - देवी-ईश्वर संवादरूप। इसमें प्रथम और द्वितीय दो भाग हैं। प्रथम भाग में 19 पटल हैं। द्वितीय भाग का नाम कामरूपनिर्णय है। उसमें पटल हैं 14। द्वितीय भाग में 4 पीठों का विवरण भी दिया हुआ है। इससे ज्ञात होता है कि उड्यान पीठ का आविर्भाव सत्ययुग में, पूर्णशैल का त्रेता में, जालन्धर का द्वापर में तथा कामरूप (या कामाख्या) का आविर्भाव कलियुग में हुआ। कलकत्ता और मुम्बई में 1887 ई. में इसका मुद्रग हो चुका है। (2) श्लोक- 3510। पटल- 9। विषय- योगिनीतंत्र का माहात्म्य आदि कथन,काली का रूप वर्णन, गुरुमाहात्म्य, दीक्षाविधि पूजा, जप आदि के काल आदि का कथन, काली, तारा आदि विद्याओं का अभेद कथन, दिव्य, वीर, पशु आदि भावों का निरूपण। (3) श्लोक- 2800। पटल- 101 योगिनीपूजा - श्लोक- 100। विषय- चौसठ योगिनियों की पूजाविधि, महाबलि आदि का वर्णन है। योगिनीहृदयम् - देवी-शंकर संवादरूप। श्लोक- 500 । पटल6। विषय- 1) श्रीचक्रसंकेत, 2) मंत्रसंकेत, 3) पूजासंकेत, 4) मन्त्रोद्धार, 5) दीक्षाकाल निर्णय आदि तथा 6) वीरसाधना। योगिनीहृदय-दीपिका - ले.- अमृतानन्द। गुरु-पुण्यानन्दनाथ । श्लोक- 3000। योगिनीहृदय की अमृतानन्दनाथ रचित दीपिका नामक टीका है। योगिन्यादिपूजनविधि - श्लोक- 3601 योगि-भक्त-चरितम् (काव्य) - ले.- म.म. कालीपद तर्काचार्य ई. 1888-1972। योगिभोगिसंवाद- शतकम् - ले.- श्रीनिवासशास्त्री। योगेशीसहस्रनामस्तोत्रम् - रुद्रयामलतंत्रान्तर्गत विष्णु-हर संवाद रूप। 200 श्लोकात्मक। यौवन-विलास (काव्य) - ले.- म.म. विधुशेखर शास्त्री। जन्म ई. 1978 में। यौवनोल्लासम् - कवि-उमानंद। यौवराज्यम् - ले.- जग्गू श्रीबकुल भूषण। “संस्कृतप्रतिभा" में प्रकाशित एकांकिका। छोटे छोटे चटुल संवाद। आरम्भ में हंस हंसी का मूकाभिनय । विषय-रामबन्धु भरत के यौवराज्याभिषेक की कथा। योनिकवचम् (अपरनाम- त्रैलोक्यविजयम्) - उमा-महेश्वर संवादरूप। नीलतंत्र के अंतर्गत । योनिगह्वरतन्त्रम् - श्री ज्ञाननेत्र द्वारा प्रकाशित हुआ। देवी-महादेव संवादरूप। नाथसम्प्रदाय से संबद्ध प्रतीत होता है। नाथसम्प्रदाय का गुरु-क्रम भी इसमें वर्णित है ।यह उत्तराम्नाय संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 287 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy