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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir का तंत्र है। नायक के दिग्विजय का वर्णन। (2) ले- राजचूडामणि। पितायोनितंत्रम् - (1) हर-पार्वती संवादरूप। पटल- 17। विषय रत्नखेट दीक्षित । विषय- तंजौर के रघुनाथ नायक का चरित्र । योनिपूजाप्रशंसा, पूज्य और अपूज्य योनियों का विचार । अक्षतयोनि रघुनाथभूपालीयम् - ले.- कृष्णकवि। विषय- आश्रयदाता। के पूजन में दोष। पंचतत्त्व विधि। कौलों में उत्तम, मध्यम रघुनाथ (नायक) नृपति का स्तवन, तथा अलंकारों के निदर्शन। आदि का भेद कथन, योनि में महाविद्या की उपासनाविधि।। आठ सर्ग । टीकाकार सुधीन्द्रयति का समय है ई. 17 वीं शती। तत्त्व से तिलकविधि । तत्त्व से पूजा की विधि, वीरसाधनाविधि। रघुनाथविजयचंपू - ले.- कृष्ण (कविसार्वभौम उपाधि) आसन की उपासना, अन्तर्याग, मंत्ररात्र आदि की विधि। काली रचनाकाल, 1885 ई.। पिता- दुर्गपुरनिवासी तातार्य। इस चंपू को प्रसन्न करने वाले उपचार, वीरपुरश्चरणविधि। पंचतत्त्वशोधन काव्य में 5 विलास हैं जिनमें पंचवटी के निकटस्थ विचूरपुर-नरेश विधि । पूजास्थान आदि का निरूपण। (2) हर-पार्वती संवादरूप । रघुनाथ की जीवन गाथा वर्णित है। कवि ने यात्राप्रबंध और श्लोक- 305। पटल-8, विषय- योनिपीठ की प्रधानता। हरिहर चरित वर्णन का मिश्रित रूप प्रस्तुत कर, इस काव्य के स्वरूप आदि का योनि से संभव (जन्म), कथन शक्ति-मंत्र की को संवारा है। स्वयं कवि के अनुसार इस काव्य की रचना उपासना कर योनिपूजा न करते में दोष। दिव्य भाव और एक दिन में ही हुई है। इसका प्रकाशन गोपाल नारायण वीरभाव की प्रशंसा। योनिपूजाविधि। रजकी, नापितांगना आदि कंपनी मुंबई से हो चुका है। 9 कन्याओं का कथन, योनिपूजा के साधन बलि और नैवैद्य, योनिपूजा का फल। राम, कृष्ण आदि की योनि-उपासकता। रघुनाथविलासम् (नाटक) - ले.- यज्ञनारायण दीक्षित। ई. वैदिक, वैष्णव, शैव, दक्षिण और वाम सिद्धान्त के कौल 17 वीं शती। प्रथम अभिनय तंजौर के राजा रघुनाथ (जो शास्त्रों में उत्तरोत्तर प्रधानता। श्राद्ध में कौलियों को भोजन इस नाटक के नायक हैं) के समक्ष । कवि को रघुनाथ से कराने का फल। योनिदर्शन काल में नायिका की उर्वशी पुरस्कारस्वरूप रत्न मिले थे। इसका नायक ऐतिहासिक, परन्तु तुल्यता। कलियुग में योनिपूजन ही श्रेयस्कर है। कथा कल्पनारंजित है। प्रमुख रस- शृंगार। समासबहुल शैली। लम्बी एकोकक्तियां, कुछ देशी शब्दों का प्रयोग। संवाद में रकारादिरामसहस्रनाम - ले.-श्रीब्रह्मयामल से गृहीत। उमा पद्यों की अतिशयता और अनुप्रास का प्रचूर प्रयोग इस की महेश्वर संवादरूप। विशेषता है। सरस्वती महल, तंजौर से प्रकाशित । कथासाररक्षकः श्रीगोरक्षः (नाटक) - ले.- यतीन्द्रविमल चौधुरी। तीर्थयात्रा में स्नान करते समय किसी ब्राह्मण को नायक रघुनाथ विषय- योगी गोरखनाथ का चरित्र। अंकसंख्या- सात । मकर से ग्रस्त होने से बचा लेता है। उस मकर के पेट में रक्षाबन्धनशतकम् - ले.- विमलकुमार जैन । कलकत्ता निवासी। से एक सुगन्धी नथनी निकलती है। उस नथनी की स्वामिनी रंगनाथ-देशिकाह्निकम् - ले.- रंगनाथ देशिक । को राजा ढूंढ निकालता है। वह है लङ्काधिप विजयकेतु रंगनाथसहस्रम् - ले.- त्रिवेणी। वेंकटाचार्य की पत्नी। की पुत्री चन्द्रकला। राजा रघुनाथ कापलिकी प्रतिभावती से रंगहृदयम् (स्तोत्रसंग्रह) - ले.- पांडुरंग अवधूत योगसिद्धि प्रदायिनी वस्तुएं पा लेता है और उनकी सहायता (रंगावधूतस्वामी)। ई. 20 वीं शती। नारेश्वर (गुजरात) के से नायिका के पास जाता है। चन्द्रकला के माता-पिता उसका निवासी। भगवान् दत्तात्रेय के परमभक्त संन्यासी थे। नर्मदा के विवाह रघुनायक के साथ कराना चाहते हैं परन्तु प्रतिभावती तीर पर बडोदा के पास नारेश्वर नामक तीर्थक्षेत्र में आपने की सहायता से नायक उसे पाने में सफल होता है। इन्दिरा तपश्चर्या की थी, वहीं उनका समाधिस्थान बना है जहां प्रतिदिन भवन में दोनों का विवाह सम्पन्न होता है। सैकड़ों यात्री दर्शन के लिए जाते हैं। रंगहृदय नामक स्तोत्रसंग्रह रघुनाथाभ्युदयम् (महाकाव्य) - कवयित्री- रामभद्राम्बा । में श्रीरंगावधूत स्वामी कृत श्रीदत्त तथा अन्य देवता विषयक तंजौर के अधिपति रघुनाथ नायक की धर्मपत्नी। अपना पति स्तोत्रों का संकलन गुजराती गद्यानुवाद के साथ प्रकाशित किया साक्षात् राम का अवतार है, इस श्रद्धा से उसने यह काव्य है। प्रकाशक- जयंतीलाल शंकरलाल आचार्य, अवधतसाहित्य रचना की तथा रघुनाथ नायक का चरित्र वर्णन किया है। प्रकाशन ट्रस्ट, नारेश्वर। रघुपतिविजयम् (काव्य) - ले.- गोपीनाथ कवि। रघुनन्दनविलसितम् - कवि- (1) वेंकटाचार्य और पात्राचार्य। रघुराज-मंगलचंद्रावली - कवि बघेलखण्ड के अधिपति रघुनाथ तार्किक-शिरोमणिचरितम् - कवि-वसन्त त्र्यम्बक रघुराजसिंह। कुल अध्याय दो भागों (86 = 48 + 38) शेवडे। नागपुर निवासी। त्रिसर्गात्मक 127 श्लोकों का यह में विभाजित ग्रंथ है। यह विभाजन श्रीमद्भागवत के दशम काव्य, सारस्वतीसुषमा (वाराणसी) में प्रकाशित । स्कन्ध के कृष्णचरित्र पर आधारित है। विषय- स्तुतिद्वारा श्रीकृष्ण रघुनाथभूपविजयम् - ले.- यज्ञनारायण। गोविंद दीक्षित का से रक्षा और मंगल की याचना । ग्रंथ की रचना मासार्घ (15 पुत्र । विषय- नायक वंश की श्रेष्ठता तथा तंजौरनृपति रघुनाथ दिन) में पूर्ण हुई। 288 / संस्कृत वाङ्मय कोश - पथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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