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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रयुक्त हुई है। छंद विधान में भी शब्दावली की सुकुमारता एवं मृदुलता दिखाई पड़ती है। कालिदास ने प्रकृति की मनोरम रंगभूमि में इस नाटक के कथानक का चित्रण किया है। यह नाटक अपनी रोचकता, अभिनेयता, काव्यकौशल, रचना-चातुर्य एवं सर्वप्रियता के कारण, संस्कृत के सभी नाटकों में उत्तम माना जाता है। अभिज्ञानशाकुंतल के टीकाकार :(1) राघव, (2) काटययवेम, (3) श्रीनिवास, (4) घनश्याम, (5) अभिराम, (6) कृष्णनाथ पंचानन, (7) चन्द्रशेखर, (8) डमरुवल्लभ, (9) प्राकृताचार्य, (10) नारायण, (11) रामभद्र (12) शंकर, (13) प्रेमचंद्र, (14) डी.व्ही. पन्त (15) विद्यासागर, (16) वेंकटाचार्य (17) श्रीकृष्णनाथ, (18) बालगोविन्द, (19) दक्षिणावर्तनाथ, (20) रामवर्मा, (21) रामपिशरोती, (22) म.म. नारायणशास्त्री खिस्ते इत्यादि । अभिज्ञान शाकुंतल के अनुवाद संसार की सभी प्रमुख भाषाओं अभिधर्म-कोश - बौद्ध-दर्शन के अंतर्गत वैभाषिक मत के मूर्धन्य आचार्य वसुबंधु इस ग्रंथ के प्रणेता हैं। वसुबंधु की यह प्रसिद्ध कृति, वैभाषिक मत का सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रंथ है। इसमें सात सौ कारिकाएं हैं। यह ग्रंथ 8 परिच्छेदों में विभक्त है। इसमें विवेचित विषय हैं- (1) धातुनिर्देश, (2) इंद्रियनिर्देश, (3) लोकधातु निर्देश, (4) कर्मनिर्देश, (5) अनुशय निर्देश, (6) आर्यपुद्गल (7) ज्ञाननिर्देश और (8) ध्याननिर्देश। यह विभाजन अध्यायानुसार है। डॉ. पुर्से ने मूल ग्रंथ के साथ इसका चीनी अनुवाद, फ्रेंच भाषा की टिप्पणियों के साथ प्रकाशित किया है। हिंदी अनुवाद सहित इसका प्रकाशन हिंदुस्तानी अकादमी से हो चुका है। अनुवाद व संपादन आचार्य नरेंद्रदेव ने किया है। इस प्रसिद्ध ग्रंथ पर अनेक टीकाएं लिखी गईं। जैसे- स्थिरमति कृत भाष्य टीका (तत्त्वार्थ) दिङ्नागकृत मर्मप्रदीपवृत्ति, यशोमित्रकृत स्फुटार्थी, पुण्यवर्मन् कृत लक्षणानुसारिणी, शान्तस्थविरदेवकृत औपायिकी तथा वसुमित्र और गुणमति की दो टीकाएं। स्वयं लेखक ने अभिधर्मकोशभाष्य की रचना की है जिसकी हस्तलिखित प्रति राहुल सांकृत्यायन ने तिब्बत से प्राप्त की थी। यह ग्रंथ अभिधर्म के सर्वतत्त्वों का संक्षेप में समीक्षण है। वैभाषिकों का सर्वस्व और सर्वास्तिवादियों का आधारभूत है। समस्त बौद्ध सम्प्रदायों के लिये भी प्रमाणभूत ग्रंथ है। चीन, जपान में यह विशेष आदृत था। परमार्थकृत चीनी अनुवाद ई. 563-567, में तथा व्हेनसांग का ई. 651-653 में हुआ, इससे खण्डनमण्डन परम्परा प्रचलित हुई। सुस्पष्ट व्याख्या के अभाव में यह रचना जटिल तथा रहस्यपूर्ण ही रह जाती। अभिधर्मकोशभाष्यवृत्ति - स्थिरमति । वसुबन्धुकृत अभिधर्मकोश पर टीका। इसका तिब्बती अनुवाद सुरक्षित है। अभिधर्मन्यायानुसार - (अन्य नाम कोशकरका) लेखक- संघभद्र। सवा लाख श्लोकों का बृहत् ग्रंथ। 8 प्रकरण । अभिधर्मकोश का पूर्ण खण्डन, मूल कारिकाओं से सहमत किन्तु लेखक स्वयं सौत्रान्तिक मत के होने के कारण, उसे गद्य वृत्ति अमान्य। वैभाषिक मत की कटु आलोचना की है। व्हेनसांग ने इस का चीनी अनुवाद किया था। अभिधर्मसमयदीपिका - ले. संधभद्र। पृष्ठसंख्या 749, १ प्रकरण। चीनी अनुवादकर्ता व्हेनसांग। यह ग्रंथ दुरूह तथा खण्डनात्मक है। अभिधान-तंत्र - ले. जटाधर (ई. 15 वीं शती) अमरकोश की कारिकाओं का पुनर्लेखन मात्र । अभिधानरत्नमाला - ले. हलायुध। ई. 8 वीं शती। यह एक शब्दकोश है। अभिधावृत्तिमातृका - काव्यशास्त्र का लघु किंतु प्रौढ ग्रंथ । प्रणेता- मुकुल भट्ट। समय- ई. 9 वीं शती। इस ग्रंथ में अभिधा को ही एकमात्र शक्ति मान कर उसमें लक्षणा व व्यंजना का अंतर्भाव किया गया है। इसमें केवल 15 कारिकायें हैं जिन पर लेखक ने स्वयं वृत्ति लिखी है। मुकुल भट्ट व्यंजना-विरोधी आचार्य हैं। अभिधा के 10 प्रकारों की कल्पना करते हुए उसमें लक्षणा के 6 भेदों का समावेश किया है। अभिधा के जात्यादि 4 प्रकार के अर्थबोधक 4 भेद किये हैं और लक्षणा के 6 भेदों को अभिधा में ही गतार्थ कर, उसकें 10 भेद माने हैं। व्यंजना-शक्ति की इन्होंने स्वतंत्र सत्ता स्वीकार न कर, उसके सभी भेदों का अंतर्भाव लक्षणा में ही किया है। इस प्रकार मुकुल भट्ट ने एकमात्र अभिधा का ही शब्द-शक्ति के रूप में स्वीकार किया है। आचार्य मम्मट ने "अभिधावृत्तिमातृका"के आधार पर "शब्दव्यापारविचार" नामक ग्रंथ का प्रणयन किया था। अभिनवकथानिकुंज - संस्कृत साहित्य में नवीन कथाओं का संकलन करने के उद्देश्य से हिंदू विश्वविद्यालय के प्रवक्ता पं. शिवदत्त शर्मा चतुर्वेदी ने यह संपादन कार्य किया है। इस संग्रह में संस्कृत के मूर्धन्य विद्वानों से प्राप्त 27 कथाओं का संकलन किया है। संस्कृत साहित्य में यह अभिनव प्रयास है। कथाओं के विषय एवं शैली आधुनिक हैं। भारतीय विद्या प्रकाशन, वाराणसी द्वारा प्रकाशित। अभिनव-कादम्बरी - (त्रिमूर्तिकल्याणम्) (1) लेखकअहोबिल नरसिंह। विषय- मैसूर नरेश कृष्णराज वोडियर का चरित्र। बाणभट्ट को नीचा दिखाने की प्रतिज्ञा से लिखित ग्रंथ। लेखक का प्रयास सर्वथा असफल रहा है। (2) ढुंढिराज व्यास। ई. 18 वीं शती। अभिनव-तालमंजरी - (1) जीवरामोपाध्याय। विषयसंगीतशास्त्र । (2) अप्पातुलसी या काशीनाथ । समय- ई. 1914 । अभिनय-दर्पण - नृत्यकला विषयक एक उत्कृष्ट ग्रंथ । प्रणेतानंदिकेश्वर । 'अभिनयदर्पण' में 324 श्लोक हैं। इसमें नाट्यशास्त्र 12 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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