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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मन्थानभैरवम् (तंत्र) - श्रीनाथ -श्रीवक्रा संवादरूप यह कौलतन्त्र है। पटल 99। श्लोक 240001 विषय- क्षेत्रपाल मन्त्र, भैरव-ध्यानसूत्र, महामूर्ति भैरव के आठ वदनों में चतुःषष्टि कलाचक्र, योनिसंस्कार, विधि, सुक्-स्रुव-संस्कारविधि, घृतसंस्कारविधि इत्यादि। मंदाकिनी - कवि- श्रीभाष्यम् विजयसारथि। वरंगल (आन्ध्र प्रदेश) के निवासी। पंडितराज जगन्नाथ की सुप्रसिद्ध गंगालहरी के समान प्रस्तुत प्रदीर्घ गीतिकाव्य में भगवती गंगा मैया की सर्वांगीण स्तुति कवि ने प्रस्तुत की है। अनेक अप्रचलित नामों एवं क्रियापदों का प्रयोग कवि ने सर्वत्र भरपूर मात्रा में किया है, जिनके सुबोध संस्कृत पर्याय कवि ने अंत में दिए हैं। सन 1980 में यह गीतिरूप खंडकाव्य वरंगल की "संस्कृत भारती" संस्था द्वारा प्रकाशित हुआ। मन्दाक्रान्तावृत्तम् - ले.-म.म. कालीपद तर्काचार्य (1888-1972) मंदारमंजरी - ले.- व्यासतीर्थ । मन्दारमंजरी (कथा)- ले.- विश्वेश्वर पाण्डेय । पटिया (अलमोडा जिला) ग्राम के निवासी। ई. 18 वीं शती (पूर्वार्ध)। मंदार-मरन्दचंपू - प्रणेता-श्रीकृष्ण कवि। समय- 16-17 वीं शती। इस चंपू-काव्य की रचना लक्षण ग्रंथ के रूप में हुई है, जिसमें 200 छंदों के सोदाहरण लक्षण व नायक, श्लेष, यमक, चित्र, नाटक, भाव, रस, 116 अलंकार, 87 दोष-गुण तथा शब्द-शक्ति पदार्थ व पाक का निरूपण है। इसका वर्ण्य-विषय 11 बिंदुओं में विभक्त है। भूमिका-भाग में कवि ने प्रबंधत्व की सुरक्षा के लिये एक काल्पनिक गंधर्व-दंपती का वर्णन किया है, और कहीं कहीं राधा-कृष्ण का भी उल्लेख किया है। ये सभी वर्णन छंदों के लक्षण व उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किये हैं। इसका प्रकाशन निर्णयसागर प्रेस, मुंबई (काव्यमाला 52) से, सन 1924 में हो चुका है। मन्त्रकमलाकर - ले.- कमलाकरभट्ट। पिता- रामकृष्णभट्ट । विषय- दीक्षाविधि, महागणपतिपद्धति, गणेशमन्त्र, रामपूजाविधि, राममन्त्रोद्धार, कार्तवीर्य-दीपदानप्रयोग, कार्तवीर्यार्जुन-पद्धति, बन्ध्यत्व की निवृत्ति, सर्प-विष को उतारना, कार्तवीर्य सहस्रनामस्तोत्र इ. श्लोक- 45051 मंत्रकाशीखंड -टीका- ले.-नीलकंठ चतुर्धर । पिता- गोविंद। माता- फुल्लांबिका। ई. 17 वीं शती। मन्त्रकौमुदी - ले.-देवनाथ ठक्कुर तर्कपंचानन। मन्त्रकल्प- मन्त्रचिन्तामणि के अन्तर्गत हर-गौरी संवादरूप। विषय- अभीष्ट फलप्रद विविध मन्त्रों की विधि, जिनमें ये मुख्य हैं- मोहनमंत्र, राजवशीकरणमंत्र, जीवनपर्यन्त स्वामी को वश में रखने वाला मन्त्र, दिव्य स्तम्भनमंत्र, राजकीयमोहनमंत्र, दुष्टवशीकरण मंत्र, मृत्युंजय मंत्र, धनिकवशीकरण मंत्र, विवाद में विजय करानेवाला मंत्र, जगद्वशीकरण मंत्र, मृत्युवशीकरण मंत्र, स्वामी को वश में करने वाला कालानलमंत्र, कोपहरण करनेवाला मंत्र, स्त्रीसौभाग्यप्रद मंत्र, प्रियवशीकरण-मंत्र, कामराजमंत्र, कामिनीमदनभंजनमंत्र राजांगना को वश में करने वाला मंत्र, आकर्षणमंत्र, प्रियदर्शनमंत्र, मानिनीकर्षणमंत्र, मुखस्तंभमंत्र, इ.। मन्त्रकल्पलता - तरंग- 8। विषय- महाविद्या आदि देवियों तथा देवों के मन्त्र और मन्त्रों के ऋषि, छन्द, देवता इ.। मन्त्रगणेशचन्द्रिका - विषय- महागणपति, लक्ष्मीविनायक, वक्रतुण्ड, विद्यागणपति, शक्तिगणेश, हेरम्बगणपति, हरिद्रागणेश आदि विभिन्न गणेशों की पूजापद्धति । मन्त्रकोश - 1) ले.-आशादित्य त्रिपाठी। श्लोक- 5000। ___2) ले. म.म. जगन्नाथ भट्टाचार्य। श्लोक- 279। विषयवर्णों की उत्पत्ति को प्रकारों का वर्णन करते हुए तन्त्रोक्त संकेत से उनके पर्याय प्रतिपादित। ____3) ले. दक्षिणामूर्ति। 4) ले. विनायक। 5) वामकेश्वरतंत्र से गृहीत। 6) ले. आशादित्य त्रिपाठी। दाक्षिणात्य। ई. 18 वीं शती। 20 परिच्छेदों में पूर्ण । चार काण्डों में सामवेद-गृह्यसूत्र के मन्त्रों की व्याख्या है। मन्त्रचन्द्रिका - ले.-जनार्दन गोस्वामी। पिता- जगन्निवास । प्रकाश- 12। श्लोक 2513। विषय- पंच देवों की पूजा तथा मन्त्रों का प्रतिपादन। मन्त्रचन्द्रिका - ले. काशीनाथ। पितामह- भडोपनामक शिवराम भट्ट। पिता- जयराम भट्ट। ग्रंथ साधारण तांत्रिक विधियों से पूर्ण। विविध देवियों के मन्त्र का इसमें प्रतिपादन है। विषयदीक्षाविधान, सामान्य पूजाविधि, गणेश-मंत्रविधान, राममंत्र आदि, वैष्णव मंत्रों का विधि, वागीश्वरी-मंत्रविधि, महाविद्या-मंत्रविधि, शैव सुब्रह्मण्यादि मंत्रों का विधान आदि। श्लोक- 1500 । प्रकाश- 9। प्रकाशों के क्रमशः विषय-1) गणेश, वक्रतुण्ड, मंदारमालिका (वीथी) - ले.-दामोदरन् नम्बुद्री (ई. 19 वीं शती)। मन्दारवती- ले. कृष्णम्माचार्य। रंगनाथाचार्य के पुत्र । आधुनिक उपन्यास तन्त्र के अनुसार रचना। 18 प्रकरण। मन्दोर्मिमाला - ले.-डा. श्री. भा. वर्णेकर, नागपुर निवासी। इसमें चार सौ श्लोक अन्तर्भूत हैं। कवि ने यह प्रथम रचना छात्रदशा मे की है। स्वाध्याय मंडल, किलापारडी (गुजरात) द्वारा सन 1954 में प्रकाशित । मन्मथ-मन्थनम् (डिम) - ले.-रामकवि । ई. 19 वीं शती । 2) काव्य। ले. सुब्रह्मण्यसूरि । मन्मथविजयम् (रूपक) - ले.-वेकट राघवाचार्य। ई. 19 वीं शती। 252 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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