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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कर्मों के फल । मनुस्मृति का वर्ण्य विषय अति व्यापक है। इसमें राजधर्म, धर्मशास्त्र, सामाजिक नियम तथा समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र एवं हिंदु विधि की विस्तारपूर्वक चर्चा की गई है | राज्यशास्त्र के अंतर्गत राज्य का स्वरूप, राज्य की उत्पत्ति, राजा का स्वरूप, मंत्रि परिषद्, मंत्रि-परिषद् की संख्या, सदस्यों की योग्यता, कार्यप्रणाली न्यायालयों का संगठन व कार्यप्रणाली, दंड विधान, दंड - दान सिद्धान्त कोश-वृद्धि के सिद्धान्त, लाभकर, षाड्गुण्य मंत्र, युद्ध-संचालन, युद्धनियम आदि विषय वर्णित हैं। धर्मशास्त्रइसके अंतर्गत धर्म की परिभाषा, धर्म के उपादान, वेद, स्मृति, भद्र पुरुषों का आधार, आत्मतुष्टि, कर्म-विवेचन, क्षेत्रज्ञ, भूतात्मजीव, नरक कष्ट, सत्त्व-रज-तम का विवेचन, निःश्रेयस की उत्पत्ति, आत्मज्ञान, प्रवृत्ति व निवृत्ति का वर्णन है। सामाजिक विधि- इसके अंतर्गत वर्णित विषय हैं- पति-पत्नी के व्यवहारानुकूल कर्त्तव्य, बच्चे पर अधिकार का नियम, प्रथम पत्नी के अतिक्रमण का समय विवाह की अवस्था, बंटवारा व उसकी अवधि, ज्येष्ठ पुत्र का विशेष भाग, दत्तक पुत्र-पुत्रियां, दायभाग, स्त्री धन के प्रकार व उसका उत्तराधिकार, वसीयत से हटाने के कारण, माता एवं पितामह उत्तराधिकारी के रूप में आदि । मनुस्मृति के टीकाकार1) मन्वर्थमुक्तावलीकार कुल्लुकभट्ट ये वारेन्द्री (बंगाल में राजशाही) के निवासी थे। 2) मन्वाशयानुसारिणीकार गोविन्दराज 3) नन्दिनी टीकाकार नन्दनाचार्य । 4) मन्वर्थचन्द्रिकाकार राघवानन्द सरस्वती। 5) सुखबोधिनीकार मणिराम दीक्षित 6) मन्वर्थविवृत्तिकार नारायण सर्वज्ञ। इन के अतिरिक्त, असहाय, उदयकर, कृष्णनाथ, धरणीधर, यज्वा, रामचंद्र और रूचिदत्त द्वारा टीकाओं का उल्लेख मिलता है। व्ही. एन. मंडलीक द्वारा अनेक टीकाओं का प्रकाशन हुआ है। मनोदूतम् ले. कवि विष्णुदास । ई. 16 वीं शती। यह शांतरसपरक काव्य है। इसमें कवि ने अपने मन को दूत बना कर भगवान् कृष्ण के चरण कमलों में अपना संदेश भिजवाया है। कवि ने अपने मन को यमुना, वृंदावन व गोकुल में जाने को कहता है। संदेश के क्रम में यमुना व वृंदावन की प्राकृतिक छटा का मनोरम वर्णन है। इस काव्य की रचना "मेघदूत" के अनुकरण पर हुई है। इसमें कुल 101 श्लोक है। भाव, विषय व भाषा की दृष्टि से यह काव्य उत्कृष्ट है। वैष्णव दूतकाव्यों में, यह प्रथम माना जाता है । ले-तेलंग 2) व्रजनाथ । रचनाकाल- वि.सं. 1814 रचना-स्थल-वृंदावन। "मनोदूत"" की रचना का आधार "मेघदूत" ही है। इसमें 202 शिखरिणी छंद है और चीर हरण के समय असहाय द्रौपदी द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण के पास संदेश भेजने का वर्णन है । कवि ने प्रारंभ में मन की अत्यधिक प्रशंसा की है। पश्चात् द्वारकापुरी का रम्य वर्णन है। इसमें कृष्ण भक्ति एवं भगवान् की अनंत शक्ति का प्रभाव दर्शाया गया है। मनोनुरंजनम् (हरिभक्ति) ले. अनन्त देव । 16वीं शती ( उत्तरार्ध) यह वैदर्भीय रीति में रचित पांच अंकों का श्रीकृष्णविषयक नाटक है प्रमुख रस भक्त, परंतु शृंगार में डूबी हुई। पूरे नाटक में एक भी प्राकृत वाक्य नहीं । सौ से अधिक में संगीतमयी शैली है। छायानाट्य तत्त्व का प्रयोग । कथावस्तु ब्राह्मणों एवं गोपालों के साथ नन्द यमुनातट पर स्थित गोवर्धन पर यज्ञ का आयोजन करते हैं । परंतु विवाद उठता है कि देवराज की सेवा नन्दराजा क्यों करें। कृष्ण का कथन है कि ब्राह्मण, गोमाता तथा गोवर्धन ही हमारे पोषक हैं, अतः उन्हीं की पूजा समुचित है। इन्द्र इस बात पर क्रुद्ध होते हैं और पूरे गोकुल को वर्षा से बहा देने की आज्ञा मेघों को देते हैं परंतु विजय श्रीकृष्ण की होती है, तथा इन्द्र क्षमायाचना करते हैं। पांचवे अंक में गोपियां यमुना में स्नान करती हैं, जब कृष्ण उनके वस्त्र उठाकर मित्र श्रीदामा के साथ कदंब वृक्ष पर चढ बैठते हैं और शाम को रासक्रीडा होती है। अन्त में कृष्ण नारद से कहते हैं कि हमारे गुणसंकीर्तन के लिए एक सम्प्रदाय बनाओ । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मनोबोध - श्रीसमर्थ रामदास स्वामी विरचित "मनाचे श्लोक " (संख्या 205) नामक सुप्रसिद्ध आध्यात्मिक मराठी काव्य का अनुवाद | अनुवादक- श्रीरामदासानुदास कहलाते है । 2 ) अनुवादक- तपतीतीरवासी। 3) अनुवादक- पांडुरंग शास्त्री डेगवेकर। ठाणे के निवासी। 4) अनुवादक- श्या. गो. रावळे । मनोयानम् (खंडकाव्य) ले. पं. कृष्णप्रसाद शर्मा घिमिरे इसके रचयिता काठमांडु (नेपाल) के निवासी एवं श्रीकृष्णचरित महाकाव्य आदि 12 ग्रंथों के निर्माता है। कविरत्न और विद्यावारिधि इन उपाधियों से विभूषित आप 20 वीं शती के प्रमुख लेखकों में मान्यताप्राप्त है। For Private and Personal Use Only मनोरमा ले. - रमानाथ । ई. 16 वीं शती । यह कातंत्र धातुपाठ की वृत्ति है। - मनोरमा सन 1949 में बेहरामपुर (गंजाम) से अनन्त त्रिपाठी के सम्पादकत्व में इस पत्र का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इस पत्र के प्रथम भाग में किसी ग्रंथ का अंश तथा दूसरे भाग में दार्शनिक, ऐतिहासिक, वैज्ञानिक निबन्धों का प्रकाशन होता है। इस में ताम्रपत्रों पर अंकित श्लोकों का प्रकाशन भी हुआ। मनोरमाकुचमर्दिनी (टीका) (या कुचमर्दन) ले. पंडितराज जगन्नाथ। भट्टोजी दीक्षित कृत प्रौढ मनोरमा नामक टीका में प्रतिपादित मतों के खंडनार्थ यह टीका लिखी गई है। मनोरमातंत्रराज- टीका ले. प्रकाशानन्द। ई. 15 वीं शती । मंधरादुर्विलसितम् ले कवीन्द्र परमानन्द शर्मा ई. 19-20 वीं शती । लक्ष्मणमठ के ऋषिकुल के निवासी । इनके संपूर्ण रामचरित्र के भागों में यह एक है। शेष भाग अन्यत्र उद्धृत हैं। - संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 251
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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