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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्रोधीश भैरव। विषय- भूतडामर तथा यक्षडामर में अवर्णित बीजों का विधान एवं अकार से लेकर क्षकार पर्यन्त वर्गों (मातृकाक्षरों) की संज्ञा भी निर्दिष्ट है। भूतशुद्धितन्त्रम् - हर-पार्वती संवादरूप । श्लोक- 760। पटल17। विषय- तत्त्वत्रय का वर्णन । भूतरुद्राक्षमाहात्य - ले. परमशिवेन्द्र सरस्वती। गुरुअभिनवनारायण सरस्वती। विषय- शिवजी के प्रति लिए विभूति के उपयोग तथा रुद्राक्षधारण की अत्यन्त आवश्यकता। भूदेव-चरितम् (महाकाव्य)- ले. महेशचन्द्र तर्कचूडामणि । ई. 20 वीं शती। सर्गसंख्या- चौबीस। भूतारोद्धरणम् (नाटक) - ले. मथुराप्रसाद दीक्षित (20 श.) दुर्वास द्वारा शापित साम्ब के कारण उत्पन्न यादवी युद्ध का कथानक इस दुःखान्त नाटक का विषय है। अंकसंख्या-पांच। अन्त में श्रीकृष्ण की मरणासन्न स्थिति देख बलराम की जलसमाधि का चित्रण किया है। भूमण्डलीय सूर्यग्रहगणितम्- ले. व्यंकटेश बापूजी केतकर । भू-वराहविजयम् - ले. श्रीनिवास कवि । सरदवल्ली कुलोत्पन्न । मुष्णग्राम के निवासी आठ सर्गों का काव्य । भूषणम् - ले. गोविंदराज। ई. 16 वीं शती। पिता- वरदराज। कांचीनिवासी। रामायण की यह प्रसिद्ध विद्वत्तापूर्ण टीका है। इसमें सप्त कांडों के नाम मणिमंजीर, पीतांबर, रत्नमेखला, मुक्ताहार, शृंगारतिलक, मणिमुकुट तथा रत्नकिरीट रखे गये हैं। भंगदूतम् - ले. शतावधान कवि श्रीकृष्णदेव। ई. 18 वीं शती। इस दूत-काव्य का प्रकाशन नागपुर विश्वविद्यालय पत्रिका (सं. 3) दिसंबर 1937 ई में हो चुका है। "मेघदूत" की शैली में रचित इस काव्य ग्रंथ में कुल 126 मंदाक्रांता छंद है। श्रीकृष्ण के विरह मे व्याकुल होकर कोई गोपी भंग के द्वारा उनके पास संदेश भिजवाती है। संदेश के प्रसंग में वृंदावन, नंदगृह, नंद उद्यान एवं गोपियों की विलासमय चेष्टाओं का मनोरम वर्णन किया गया है। संदेश का अंत होते ही श्रीकृष्ण प्रकट होकर गोपी को परम पद देते हैं। भंगसंदेश - ले. वासुदेव कवि। समय- 15-16 वीं शताब्दी। इस काव्य की काल्पनिक कथा में किसी प्रेमी विरही क्षरा स्यान्दुर (त्रिवेन्द्रम) से श्वेतदुर्ग (कोट्ब्टक्कल) में स्थित अपनी प्रेयसी के पास संदेश भेजा गया है। यह संदेश एक भंग के द्वारा भेजा जाता है। मेघदूत के समान इसके दो विभाग हैं पूर्व व उत्तर। प्रत्येक भाग में 80 श्लोक हैं। संदेश में नायक अपनी पत्नी को शीघ्र आने की सूचना देता है। भृगुसंहिता - भृगु ऋषि द्वारा रचित एक भविष्यविषयक ग्रंथ । इस ग्रंथ मे असंख्य जन्मकुण्डलियां दी गई हैं। जिस व्यक्ति को अपना भूत -भविष्य जानना हो वह अपनी जन्मकुंडली इस ग्रंथ में ढूंढ निकाले और उसके नीचे दिया हुआ भूत भविष्य पढे। आज कल नकली भृगुसंहिता का भी अत्यधिक प्रसार हो रहा है। इसकी प्रामाणिक प्रतियां जो अत्यंत जीर्ण पोथियों के रूप में हैं, मेरठ, पंजाब के दुबली, होशियारपूर तथा काश्मीर, बरनाली, दिल्ली, हरिद्वार, देवप्रयाग स्थानों पर पाई जाती है। "अॅस्ट्रोलाजिकल मॅगझीन" के अप्रैल 1966 के अंक में, भृगुसंहिता से स्व, लालबहादुर शास्त्री का भविष्य इस प्रकार उद्धृत किया गया था___इस व्यक्ति का स्वभाव सरल और विनम्र होगा। मितभाषी, निर्भय, स्पष्टवक्ता तथा सद्गुण संपन्न होगा। सहृदयता उसका स्वभाव धर्म होगा। धनी, निर्धन, उच-नीच के साथ समान व्यवहार करेगा। इसकी पत्नी का नाम ललिता होगा। उसके साथ वह अपने गृहस्थ धर्म का पालन करेगा। निर्धनता और संकटों को धैर्य तथा संतोष के साथ सहन करेगा। राजनीति में अनेक प्रतिष्ठा के पद विभूषित करेगा परंतु अहंकार या औद्धत्य से अलिप्त रहेगा। मातृभूमि के लिये अपना सब कुछ न्यौछावर कर देने का एक उच्च आदर्श वह उपस्थित करेगा। इसके चार पुत्र और दो पुत्रियां होंगी। परिश्रमी और धैर्यवान, होगा परंतु स्वास्थ्य साथ नहीं देगा। 60 वर्ष की आयु में यह अपने देश का प्रधान मंत्री बनेगा। अल्पावधि में वह देश को बहुत बडा मान सम्मान तथा महत्त्व प्राप्त करा देगा। शांति और धीरज से विदेशी आक्रमण के संकट का सामना कर, मातृभूति को संकट से मुक्त करेगा तथा उसकी प्रतिष्ठा अक्षुण्ण रखेगा। 62 वर्ष की आयु में स्वास्थ्य के विषय में अत्यंत चिंता निर्माण होगी। ___ जब पोथी में यह भविष्य पढा जा रहा था, तब दिखाई दिया कि पौष शुद्ध पौर्णिमा से माघ शुद्ध पोर्णिमा तक समय अत्यंत चिंताजनक है। भृगु ने लिखा है कि इस काल में ऐसा विधिसंकेत है कि इसकी जान पर आने वाले प्राणांतिक संकट में से उसकी कोई भी रक्षा नहीं कर सकता है। आगे भृगु ऋषि कहते हैं कि हृदयव्यथा से जो परिणाम निकलने वाला है, उसका चित्र आंखों के सामने खडा होकर मेरे ही नेत्रों में आंसू आ गये हैं। यह अध्याय मुझे साश्रु नयनों से समाप्त करना पड़ रहा है। स्व. शास्त्री का भृगुसंहिता का दिया गया उपर्युक्त भविष्य अक्षरशः सही निकला यह बतलाने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि उनका जीवनपट लोगों ने प्रत्यक्ष देखा है। भेदधिक्कार - ले.- नृसिंहाश्रम। ई. 16 वीं शती। भेदवादवारणम् - ले.- (नामान्तर भेदभाव- विदारिणी) । ले. अभिनवगुप्त। ग्रंथकार ने ईश्वर प्रत्यभिज्ञाविमर्शिनी में इसका उल्लेख किया है। भेदरत्नप्रकाश - ले.- शंकर मिश्र। ई. 15 वीं शती। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 243 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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