SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 261
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भेदाभेदपरीक्षा ले. शानश्री बौद्धाचार्य ई. 14 वीं शती । भेदिका (भावार्थदीपिका की टीका) ले रामतनु शर्मा टीकाकार मूल ग्रंथकार के शिष्य थे । भेलसंहिता ले भेल आचार्य गुरु पुनर्वसु आत्रेय विषय- आयुर्वेद । इस ग्रंथ का उपलब्ध रूप अपूर्ण है। इस पर " चरक संहिता" का प्रभाव है। इसका प्रकाशन कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा हुआ है। इसके अध्यायों के नाम तथा बहुत से वचन " चरक संहिता" के ही समान हैं। इसका रचना काल ई.पू. 600 वर्ष माना जाता है। इसकी रचना सूत्र स्थान, निदान, विमान, शारीर चिकित्सा, कल्प व सिद्धस्थान के रूप में हुई है। इसके विषय बहुत कुछ "चरक” संहिता से मिलते जुलते है पर इसमें ऐसी अनेक बातों का भी विवेचन है, जिनका अभाव "चरक संहिता" में है। "सुश्रुतसंहिता " की भांति इसमें कुष्ठरोग में खदिर के उपयोग पर बल दिया है। इसका हृदयवर्णन सुश्रुत से साम्य रखता है । - www.kobatirth.org भैमी नैषधीयम् ले. सीताराम आचार्य (श. 20) "भारती" पत्रिका में जयपुर से प्रकाशित। 1937 में भारती की एकांकी प्रतियोगिता हेतु लिखित एकांकी। दृश्यसंख्या- चार । कथावस्तु नल-दमयन्ती की प्रणयकथा । भैरवदीपदानविधि ले. रामचन्द्र । भैरवपद्धति मुख्य मुख्य तंत्रों से संगृहीत विषय- भैरव की पूजा के लिए निर्देश है जैसे साधक रविवार को ब्राह्ममुहूर्त में दक्षिणांग से उठकर इष्ट देव भैरव का स्मरण करते हुए बाये पैर को भूमि पर रखे। हाथ पैर धोकर और रात्रि के वस्त्र बदल कर, भैरव स्वरूप का ध्यान कर मंत्र का एक लक्ष जप कर उसका दशांक होम नमक मिली सरसों से करे। - (2) ले मल्लिषेण । जैनाचार्य। ई. 11 वीं शती। 10 अधिकार और 400 अनुष्टुप् श्लोक । भैरवपूजापद्धति ले. रामचंद्र । यह कृष्णभट्ट कृत भैरवपूजापद्धति के आधार पर लिखी गई है। श्लोक - 360 । विषय- अवश्य करणीय प्रातः कृत्यों से लेकर सांगोपांग बटुक भैरव पूजापद्धति भैरवविलासम् (रूपक) ले. ब्रह्ममित्र वैद्यनाथ T कथासार दभक्त के घर भैरव पधार कर कहते हैं कि अपने पांच वर्ष के बालक का आलभन कर भिक्षा परोसो । वे पुत्र श्रीलाल को काटते हैं। पुत्रमांस से युक्त भात परोसा जाता है। भैरव यजमान को भी भोजन सेवन के लिए बाध्य करते हैं। भैरव कहते हैं कि वह अपत्य हीन के घर भिक्षा ग्रहण नहीं करेंगा। दभ्रभक्त पत्नी सहित बाहर आकर बच्चे को पुकारते है। पुत्र पुनजीर्वित हो लौटता है। सब प्रसन्न हो भीतर आते हैं तो भैरव दिखाई नहीं देते। उनके दर्शन बिना प्राण छोड़ने का सभी निश्यय करते हैं। स्वर्ग से सपरिवार शिव आकर अपने विमान में सब को स्वर्ग ले चलते हैं। 244 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड - भैरवाचपारिजात - ले. श्रीनिवास भट्ट । श्रीनिकेतन के पुत्र एवं सुन्दरराज के शिष्य । 2) ले जैत्रसिंह । बघेलवंशीय । 14 स्तबक। श्लोक- 36571 भैरवीपटलम् शारदातिलककार विरचित । भैरवरहस्यम् ले मुकुन्दलाल । भैरवरहस्यविधि ले. हरिराम । भैरवसपर्याविधि - ले. मथुरानाथ शुक्ल । भैरवस्तव ले. अभिनवगुप्त । 2 ) ले सत्यव्रत शर्मा | भैरवस्तवराज विश्वसारोध्दारान्तर्गत, पार्वती- परमेश्वर संवादरूप । विषय- बटुक भैरव का अष्टोत्तरशत नामस्तव । भैरवानुकरणस्तोत्रम् - ले. क्षेमराज । भैषज्यरसायनम् - ले. गंगाधर कविराज । समय- 17981885 ई. । औषधिशास्त्र विषयक ग्रंथ । भैष्मीपरिणयचंपू - ले. विषय- श्रीमद्भागवत के श्रीनिवासमखी। ई. 17 वीं शती । आधार पर श्रीकृष्ण व रुक्मिणी विवाह का वर्णन । इसमें गद्य व पद्य दोनों में यमक का सुन्दर समावेश किया गया है। भोगमोक्षप्रदीपिका ले. उत्पलाचार्य । 1 - - For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - भोजनकुतूहलम् ले. रघुनाथसूरि । समय- 18 वीं शताब्दी (पूर्वार्ध) । यह पाकशास्त्र विषयक ग्रंथ अभी तक मुद्रित नहीं हो सका है। इस ग्रंथ की पांडुलिपि उज्जैन के प्राच्य ग्रंथसंग्रह में सुरक्षित है। ग्रंथ का लेखन करते समय पंडित रघुनाथ ने धर्मशास्त्र तथा वैद्यकशास्त्र के 101 ग्रंथों का उपयोग किया है। इन ग्रंथों के उद्धरण एक के बाद एक सुव्यवस्थित पद्धति से अंकित करते हुए श्री. रघुनाथ ने कहीं कहीं पर अपने स्वतंत्र मत भी व्यक्त किये हैं। ग्रंथ के इस स्वरूप से, इसे मौलिक नहीं कहा जा सकता। फिर भी पाकशास्त्र विषयक विपुल जानकारी के संकलन की दृष्टि से यह ग्रंथ पर्याप्त महत्त्व पूर्ण है। 1 - भोजप्रबंध ले- बल्लाल सेन । रचना -काल- 16 वीं शती । अपने ढंग के इस अनूठे काव्य की रचना, गद्य व पद्य दोनों में हुई है। इसमें धारा नरेश महाराज भोज की विभिन्न कवियों द्वारा की गई प्रशस्ति का वर्णन है। इसका गद्य साधारण है, किंतु पद्य रोचक व प्रौढ है। इस ग्रंथ की एक विचित्रता यह है कि इसके रचयिता ने कालिदास, भवभूति माघ तथा दंडी को भी राजा भोज की सभा में उपस्थित किया है। इसमें अल्प प्रसिद्ध कवियों का भी विवरण है। ऐतिहासिक दृष्टि से भले ही इसका महत्त्व न हो, पर साहित्यिक दृष्टि से यह उपादेय ग्रंथ है। इसकी लोकप्रियता का कारण इसके पद्य है। यह ग्रंथ हिंदी अनुवाद के साथ चौखंबा विद्याभवन से प्रकाशित हो चुका है। भोजराज सच्चरितम् (नाटक) ले वेदान्तवागीश भट्टाचार्य - -
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy