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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गया था। सृष्टि खंड भी 5 पर्वो में विभक्त है। इसमें इस पृथ्वी को “पद्म" कहा गया है तथा कमल-पुष्य पर बैठे हुए। ब्रह्मा द्वारा विस्तृत ब्रह्माण्ड की सृष्टि का निर्माण करने के संबंध में किये गये संदेह का इसी कारण निराकरण किया गया है कि पृथ्वी कमल है। __ क) पौष्कर पर्व- इस खंड में देवता, पितर, मनुष्य व मुनिसंबंधी 9 प्रकार की सृष्टि का वर्णन किया गया है। सृष्टि के सामान्य वर्णन के पश्चात् सूर्यवंश का वर्णन है। इसमें पितरों व उनके श्राद्धों से संबंद्ध विषयों का भी विवरण प्रस्तुत किया गया है। इसमें देवासुर-संग्राम का भी वर्णन है। इसी खंड में पुष्कर तालाब का वर्णन है जो ब्रह्मा के कारण पवित्र माना जाता है। उसकी, तीर्थ के रूप में वंदना भी की गई है। ख) तीर्थपर्व- इस पर्व में अनेक तीर्थों, पर्वतों, द्वीपों व सप्तसागरों का वर्णन किया गया है। इसके उपसंहार में कहा गया है कि समस्त तीर्थों में श्रीकृक्ण भगवान् का स्मरण ही सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है व इनके नाम का उच्चारण करने वाले व्यक्ति सारे संसार को तीर्थमय बना देते है (तीर्थानां तु परं तीर्थं कृष्णनाम महर्षयः । तीर्थीकुर्वन्ति जगतीं गृहीतं कृष्णनाम यैः ।। ग) तृतीय पर्व- इस पर्व में दक्षिणा देने वाले राजाओं . का वर्णन किया गया है तथा चतुर्थ पर्व में राजाओं का वंशानुकीर्तन है। ___ अंतिम पंचम पर्व में मोक्ष व उसके साधन वर्णित हैं। इसी खंड में निम्न कथाएं विस्तारपूर्वक वर्णित हैं : समुद्रमंथन, पृथु की उत्पत्ति, पुष्करतीर्थ के निवासियों का धर्म-वर्णन, वृत्रासुर-संग्राम , वामनावतार, मार्कण्डेय व कार्तिकेय की उत्पत्ति, राम-चरित तथा तारकासुर-वध। असुर -संहारक विष्णु की कथा एवं स्कंद के जन्म व विवाह के पश्चात् इस खंड की समाप्ति होती है। __2) भूमिखंड - इसका प्रारंभ सोमशर्मा की कथा से होता है जो अंततः विष्णुभक्त प्रह्लाद के रूप में उत्पन्न हुआ। इसमें भूमि का वर्णन व अनेकानेक तीर्थों की पवित्रता की सिद्धि के लिये अनेक आख्यान दिये गये हैं। इसमें सकुला की एक कथा का उल्लेख है, जिसमें दिखाया गया है कि किस प्रकार पत्नी भी तीर्थ बन सकती है। इसी खंड मे राजा पृथु, वेन, ययाति आदि के अध्यात्मसंबंधी वार्तालाप तथा विष्णुभक्ति की महनीयता का वर्णन है। इसमें च्यवन ऋषि का आख्यान तथा विष्णु व शिव की एकता विषयक तथ्यों का विवरण है। स्वर्गखंड- इसमें अनेक देवलोकों,देवता, वैकुंठ, भूतों पिशाचों, विद्याधरों, अप्सरा व यक्षों के लोकों का विवरण है। इसमें अनेक कथाएं व उपाख्यान हैं, जिनमें सुप्रसिद्ध शकुंतलोपाख्यान भी है जो "महाभारत" की कथा से भिन्न व महाकवि कालिदास के "अभिज्ञान-शाकुंतल' के निकट है। अप्सराओं व उनके लोकों का वर्णन में राजा पुरुरवा व ऊर्वशी का उपाख्यान भी वर्णित है। इसमें कर्मकांड, विष्णु-पूजापद्धति, वर्णाश्रम-धर्म व अनेक आचारों का भी वर्णन है। 4) पातालखंड- इस में नागलोक का वर्णन है तथा प्रसंगवश रावण का उल्लेख होने कारण इसमें संपूर्ण रामायण की कथा कह दी गई है। रामायण की यह कथा महाकवि कालिदास के "रघुवंश" से अत्यधिक साम्य रखती है। "रामायण" के साथ इसकी समानता आंशिक ही है। इसमें श्रृंगी ऋषि की भी कथा है जो "महाभारत" से भिन्न ढंग से वर्णित है। "पद्मपुराण" के इस खंड में भवभूति कृत "उत्तर-रामचनित्र" की कथा से साम्य रखने वाली उत्तर-रामचरित की कथा वार्णित है। इसके बाद अष्टादश पुराणों का वर्णन विस्तारपूर्वक करते हुए "श्रीमद्भागवत" की महिमा का लोकप्रिय आख्यान किया गया है। 5) उत्तर खंड- यह सबसे बड़ा खंड है। मुद्रित उत्तर खंड के 282 अध्याय हैं जब कि वंगीय प्रति में केवल 172 है। इसमें नाना प्रकार के आख्यानों, वैष्णव धर्म से संबंध व्रतों व उत्सवों का वर्णन किया गया है। विष्णु के प्रिय माघ एवं कार्तिक मास के व्रतों का विस्तारपूर्वक वर्णन कर शिव-पार्वती के वार्तालाप के रूप में राम व कृष्ण कथा दी गई है। उत्तर खंड में परिशिष्ट के रूप में "क्रियायोग-सार" नामक अध्याय में विष्णु भक्ति का महत्त्व बतलाते हुए गंगा-स्नान एवं विष्णु संबंधी उत्सवों की महत्ता प्रदर्शित की गई है। उत्तर खंड इस नाम से सी सिद्ध होता है कि यह खंड मूल पुराण को बाद में जोडा गया किन्तु किस काल में इसमें रामानुज के मत का उल्लेख है, अतः इस खंड की रचना रामानुजाचार्य के पश्चात् ही हुई यह स्पष्ट है। प्रस्तुत खंड में द्रविड देश के राजा की कथा है। यह राजा पहले वैष्णव था किंतु शैवों के आग्रही मत के प्रभाव में आकर उसने वैष्णव धर्म का त्याग किया। यही नहीं, उसने अपने राज्य में स्थापित विष्णु की मूर्तियों को उठवाकर फेंक दिया, विष्णु के मंदिर बंद करवा दिये और अपने प्रजाजनों को शैव बनने के लिये बाध्य किया। श्री अशोक चक्रवर्ती नामक एक विद्वान् के मतानुसार यह राजा था चोलवंशीय कुलोत्तुंग (द्वितीय)। शैवों के प्रभाव से वह वीरशैव बना। उसके राज्यारोहण का काल है सन 1133। इससे स्पष्ट होता है कि उत्तरखंड की रचना इस काल के पश्चात् ही हुई होगी। "पद्मपुराण" वैष्णव मत का प्रतिपादन करनेवाला पुराण है जिसमें भगवन्नाम-कीर्तन की विधि व नामापराधों का उल्लेख है। इसके प्रत्येक खंड में भक्ति की महिमा गायी है तथा भगवत्स्मृति, भगवत्तत्त्वज्ञान व भगवत्तत्त्वसाक्षात्कार को ही मूल विषय मानकर उसका व्याख्यान किया गया है- श्राद्धमाहात्म्य, संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड/179 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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