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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पदमंजरी- ले. हरदास मिश्र । यह काशिका की व्याख्या है। पदरत्नावली - ले. विजयध्वजतीर्थ । ई. 15 वीं शती। (पूर्वार्ध) द्वैतमत संप्रदाय के मुख्य भागवत- व्याख्याकार। भागवत की यह टीका इस संप्रदाय के टीकाकारों का प्रतिनिधित्व करती है। इसमें अंकित अनेक ज्ञातव्य बातें टीका-लेखक के जीवन पर प्रकाश डालती हैं। पदरत्नावली बडी प्रगल्भ कृति है। इसमें अर्थ का विश्लेषण बडी मार्मिकता से किया गया है। भागवत के पथों द्वारा द्वैत के सिद्धान्तों का समर्थन एवं पुष्टीकरण ही लेखक का वास्तविक लक्ष्य है। स्थान-स्थान पर श्रीधर के मत का खंडन करते हुए, मायावाद को निरस्त करने का प्रयास किया गया है। यह संपूर्ण भागवत पर है, बडे उत्साह एवं निष्ठा से विरचित है। इसमें भागवत के पद्यों के लिये उपयुक्त आधारभूत श्रुति का संकेत किया गया है। पदरत्नावली की यह विशेषता उसके प्रणेता के प्रगाढ वैदिक पांडित्य की भी परिचायक है। पदादूतम् - ले. कृष्ण सार्वभौम। समय ई. 18 वीं शती। इस दूतकाव्य की रचना नवद्वीप के राजा रघुरामराय की आज्ञा से हुई थी इस तथ्य का निर्देश कवि ने प्रस्तुत काव्य के अंत में (श्लोक क्र. 46) किया है। इस काव्य में श्रीकृष्ण के एक पदाङ्क को दूत बना कर किसी गोपी द्वारा कृष्ण के पास संदेश भेजा गया है। प्रारंभ मे श्रीकृष्ण के चरणांक की प्रशंसा की गई है और यमुनातट से लेकर मथुरा तक के मार्ग का वर्णन किया गया है। इसमे कुल 46 छंद हैं। एक श्लोक शार्दूलविक्रीडित छंद का है और शेष छंद मंदाक्रांता के हैं। पदार्थखण्डनम् - ले. रघुदेव न्यायालंकार । व्याख्यात्मक ग्रंथ। 2) रुद्र न्यायवाचस्पति। 3) ले. गोविंद न्यायवागीश। पदार्थतत्त्वनिरूपणम् - ले. रघुनाथ शिरोमणि । पदार्थतत्त्वनिर्णय - ले. जगदीश तर्कालंकार । पदार्थतत्त्वालोक - ले. विश्वनाथ सिद्धान्तपंचानन । पदार्थधर्मसंग्रह (प्रशस्तपादभाष्यम्)- ले. प्रशस्तपाद (प्रशस्तदेव) ई. 2 री शती। वैशेषिक दर्शन के प्रसिद्ध आचार्य। चतुर्थ शती का अंतिम चरण। यह ग्रंथ वैशेषिक सूत्रों की व्याख्या न होकर तद्विषयक स्वतंत्र व मौलिक ग्रंथ है। वैशेषिक सूत्र के पश्चात् इसे उस दर्शन का अत्यंत प्रौढ ग्रंथ माना जाता है। इस ग्रंथ की प्रशस्ति , “प्रशस्तपादभाष्य" के रूप में है। यह वैशेषिक दर्शन का आकरग्रंथ है। इसमें जगत् की सृष्टि व प्रलय, 24 गुणों का विवेचन, परमाणुवाद एवं प्रमाण का विस्तारपूर्वक विवेचन है और ये विषय कणाद सिद्धान्त के बढाव के द्योतक हैं। इस ग्रंथ का 648 ई. में चीनी में अनुवाद हो चुका था। प्रसिद्ध जापानी विद्वान् उई ने इसका आंग्ल भाषा में अनुवाद किया है। इस ग्रंथ की व्यापकता व मौलिकता के कारण इस पर अनेक भाष्य लिखे गये हैं। उनमें से प्रमुख हैं- 1) दाक्षिणात्य शैवाचार्य व्योमशिखाचार्य ने "व्योमवती' नामक भाष्य की रचना की है जो “पदार्थधर्मसंग्रह' का सर्वाधिक प्राचीन भाष्य है। व्योमशिखाचार्य हर्षवर्धन के समसामायिक थे। 2) प्रसिद्ध नैयायिक उदयनाचार्य ने "किरणावली' नामक भाष्य की रचना की है। 3) वंगदेशीय विद्वान् श्रीधराचार्य ने "न्यायकंदली'' नामक भाष्य का प्रणयन किया। उनका समय 991 ई. है। पदार्थमणिमाला - ले. जयराम न्यायपंचानन । पदार्थविवेक-टीका - ले. गोपीनाथ मौनी । पदार्थविवेक-प्रकाश - ले. रामभद्र सार्वभौम। पदार्थसंग्रह - ले. पद्मनाभाचार्य। ई. 16 वीं शती। पदार्थादर्श - ले. रामेश्वरभट्ट। 2) श्रीराघवभट्ट। शारदातिलक की व्याख्या। पद्धतिचन्द्रिका - ले. राघव पण्डित खाण्डेकर । पद्धतिरत्नमाला - ले. राघवानन्द। जालंधर निवासी। श्लोक52561 पद्धतिविवरणम् - ले. मुरारि। श्लोक- 3250। इसमें 12 आह्निक और विविध देव-देवियों की पूजाविधि वर्णित है। पद्मनाभचरितचम्पू - ले. कृष्ण। विषय- तिरु - अनन्तपुर (त्रिवेंद्रम) के देवता श्री पद्मनाभ स्वामी की कथा । पद्मनाभशतकम् - ले. राजवर्म कुलशेखर। त्रावणकोर के अधिपति । ई. 19 वीं शती। पद्मपुराणम् - पुराणों की सूची में इस वैष्णव पुराण का दूसरा क्रमांक है किन्तु देवीभागवत में 14 वां है। इसकी श्लोकसंख्या 55 हजार और कुल अध्याय 641 हैं। इसके दो संस्करण प्राप्त होते हैं। देवनागरी व बंगाली। पुणे के आनंदाश्रम से सन 1894 ई में बी. एन. मंडलिक द्वारा यह पुराण 4 भागों में प्रकाशित हुआ था। इसमें 6 खंड- 628 अध्याय और 48452 श्लोक हैं। इसके उत्तर खंड में मूलतः 4 ही खंडों का उल्लेख है। 6 खंडों की कल्पना परवर्ती है। "पद्मपराण" की श्लोकसंख्या 55 हजार कही गई है, जब कि "ब्रह्मपुराण" के अनुसार इसमें 59 हजार श्लोक हैं। इसी प्रकार खंडों के क्रम में भी भिन्नता दिखाई देती है। बंगाली संस्करण हस्तलिखित पोथियों में ही प्राप्त होता है जिसमें 5 खंड हैं। 1) सृष्टि खंड- इसका प्रारंभ भूमिका के रूप में हुआ है। इसमें 82 अध्याय हैं। इसमे लोमहर्षण द्वारा अपने पुत्र उग्रश्रवा को नैमिषारण्य में सम्मिलित मुनियों के समक्ष पुराण सुनाने के लिये भेजने का वर्णन है, और वे शौनक ऋषि के अनुरोध पर उपस्थित ऋषियों को पद्मपुराण की कथा सुनाते हैं। इसके इस नाम का रहस्य बताया गया है कि इसमें सृष्टि के प्रारम्भ में कमल से ब्रह्मा की उत्पत्ति का कथन किया 178/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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