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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यह अठारह अक्षरों का मंत्र, सभी मंत्रों से श्रेष्ठ बतलाया गया है। इस उपनिषद् में दक्षिणामूर्ति शब्द का अर्थ निम्न प्रकार दिया है- बुद्धि ही दक्षिणा है। यह दक्षिणा जिसकी आंखे और मुख है, वही दक्षिणामूर्ति है। दक्षिणामूर्तिकौस्तुभ - ले- काशीनाथ । भडोपनामक जयरामभट्ट का पुत्र। दक्षिणामूर्तिचन्द्रिका - ले- भडोपनामक काशीनाथ। श्लोक2000। पटल- 151 दक्षिणामूर्तिदीपिका - ले- काशीनाथ। भडोपनामक जयराम भट्ट का पुत्र । विषय- दक्षिणामूर्ति शिव की नित्य और नैमित्तिक पूजाओं की प्रक्रियाएं। दक्षिणामूर्तिपंचांगम् - श्लोक- 8001 दक्षिणामूर्तिपूजापद्धति - ले- सुन्दाराचार्य। श्लोक- 525 । दक्षिणामूर्तिमंत्रार्णव - ले- शंकराचार्य । दक्षिणामूर्तिसहस्रनाम - व्याख्याएं- (क) प्रबन्धमानसोल्लाससुरेश्वराचार्य कृत। श्लोक- 400। 10 उल्लास। (ख) मानसोल्लास सुवृत्तरूपविलास, रामतीर्थकृत। श्लोक- 1050 । (ग) तत्त्वसुधा- स्वयंप्रकाशयति-विरचित। श्लोक- 4001 दक्षिणामूर्तिसंहिता- शिव-पार्वती-संवादरूप । पटल-64 । विषयएकाक्षरलक्ष्मीपूजा, महालक्ष्मी-पूजा, त्रिशक्तिमहालक्ष्मीयजन, अंतरंग-स्थित अक्षर परमज्योति विद्या की आराधना, अजप-सनाम-विधान, मातृका-पूजासाधन, त्रिपुरेश्वर-समाराधन, कामेश्वरपूजा आदि। दक्षिणामूर्तिस्तोत्र - ले- श्रीशंकराचार्य। श्लोक- 48। इस पर अनेक व्याख्याएं लिखी गई हैं। दक्षिणावर्तशंखकल्प - दक्षिणावर्त शंख एक प्रकार की निधि है। इसके घर में आने पर धनधान्य की समृद्धि हो जाती है, सम्पत्तियों का अम्बार लग जाता है ऐसी लोक-प्रसिद्धि है। उक्त शंख के सम्बन्ध में कतिपय विधियां इस में वर्णित हैं। दण्डिनीरहस्यम् - ले- सदाशिव द्विवेदी। दत्तकनिरूपणम् - ले-नीलकण्ठ। ई. 17 वीं शती। पिताशंकरभट्ट। विषय- धर्मशास्त्र । दत्तकनिर्णय - ले-नीलकंठ । ई. 17 वीं शती। पिता- शंकरभट्ट।। दत्तकमीमांसा - ले- नंदपंडित। ई. 16-17 वीं शती। दत्त-करुणार्णव (स्तोत्र) - ले- श्रीधरस्वामी। सन 1908-1983 । रामदासी संप्रदाय के महाराष्ट्र के योगी। दत्तकसूत्रम् - ले- दत्तक। वेश्याओं से संबंधित कामशास्त्रीय रचना। गंगवंश के माधव वर्मा ने (ई.स. 380) इन सूत्रों की वृत्ति लिखी है जिसके केवल दो अध्याय उपलब्ध हैं। दत्तचम्पू - ले-वासुदेवानन्द सरस्वती । महाराष्ट्र के प्रख्यात योगी। दत्तपुराणम् - ले- वासुदेवानन्द सरस्वती । लेखक ने स्वयं इस नव्य पुराण पर टीका लिखी है। दत्तलीलामृताब्धिसार - ले- वासुदेवानन्द सरस्वती। दत्तात्रेय- उपनिषद् - अर्थर्ववेदान्तर्गत एक नव्य उपनिषद् । इसका स्वरूप तांत्रिक है। ग्रंथारंभ में दत्तात्रेय के तांत्रिक मंत्रों की चर्चा है। इसमें दं अथवा दां इस ओंकारसदृश दत्तबीजाक्षर का वर्णन किया गया है, पश्चात् छह, आठ, बारह और सोलह अक्षरों के दत्तमंत्र व दत्तात्रेय अनुष्टुभ् मंत्र दिये गये हैं। इस उपनिषद् के तीन छोटे खंड हैं। प्रथम खंड में उपरोक्त मंत्र, द्वितीय खंड में दत्तमाला-मंत्र तथा तृतीय खंड में फलश्रुति समाविष्ट है। द्वितीय खंडातर्गत दत्तामालामंत्र अतीव प्रभावी माना जाता है। इसके जाप से भूतपिशाच-बाधा नहीं होती। किसी को हुई हो तो इससे वह दूर की जा सकती है ऐसी श्रद्धा है। दत्तात्रेयकल्प - श्लोक- 200। इसमें नृसिंहमालामंत्र, ज्वरमंत्र, शूलिनीमंत्र, सुदर्शनमंत्र इत्यादि अन्तर्भूत हैं। दत्तात्रेयचंपू - ले- दत्तात्रेय कवि। ई. 17 वीं शताब्दी का अंतिम चरण। इस चंपू- काव्य में विष्णु के अवतार दत्तात्रेय का वर्णन किया गया है जो 3 उल्लासों में समाप्त हुआ है। यह सामान्य कोटि का ग्रंथ अभी तक अप्रकाशित है। दत्तात्रेयतन्त्रम् - ईश्वर-दत्तात्रेय संवादरूप। श्लोक- 644 । पटल- 22 | विषय-मारण मोहन, स्तम्भन इ. के उपाय । दत्तात्रेयपद्धति (दत्तार्चनकौमुदी) - ले-चैतन्यगिरि । दत्तात्रेयसहस्रनामभाष्य - ले- देवजी भट्ट । दत्तात्रेयसंहिता - श्लोक- 2251 विषय- योगांगनिरूपणपूर्वक बहुत से योगोपायों का प्रतिपादन। दत्तार्चनचन्द्रिका - ले- रामानन्द। गुरु-कृष्णानन्दसरस्वती। तीन परिच्छेदों में पूर्ण। विषय- त्रिपुराजा पद्धति।। दत्तिलम् - ले- दत्तिलाचार्य । ई. 4 थी शती । विषय- संगीतशास्त्र । दमयन्तीकल्याणम् (रूपक) - ले-रंगनाथ। ई. 18 वीं शती। प्राप्य प्रतियों में प्रथम अंक पूरा तथा द्वितीय अंक का कुछ अंश मिलता है त्रावणकोर के शुचीन्द्र मंदिर में अभिनीत । विषय- नल-दमयन्ती-विवाह की कथा। दमयन्ती-परिणयम् - ले-वासुदेव (मलबारनिवासी)। दयानन्ददिग्विजय (महाकाव्य) - ले- मेधाव्रत शास्त्री। 27 सर्ग। 2700 श्लोक। 12 और 15 सर्गों के दो काण्ड । हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशित। विषय- आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती का स्फूर्तिप्रद चरित्र। (2) लेअखिलानन्दशर्मा । सर्ग-21। दयानन्दलहरी - ले-मेधाव्रत शास्त्री। खंडकाव्य । दयाशतकम् (1) • ले- वेंकटनाथ। (2) ले- श्रीधर वेंकटेश (गेयकाव्य)। ई. 18 वीं शती। दरिद्र-दुर्दैवम् (प्रहसन ) - ले. जीव न्यायतीर्थ । जन्म 18941 संस्कृत साहित्य परिषद् ग्रंथमाला में 1968 में प्रकाशित । S संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 133 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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