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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सोमरस के निर्माण तथा उसके पान का वर्णन है। यह भी गद्यपद्यात्मक है और पदपाठ सहित इसकी विकृतियों का पाठ होता है। इसकी संहिता मंत्र और ब्राह्मण मिश्रित तथा गद्य-पद्यात्मक है। इसके प्रमुख भाष्यकारों में सायणाचार्य, बालकृष्ण दीक्षित, भट्टभास्कर, कपर्दीस्वामी, भवस्यामी, गुहदेव आदि के नाम उल्लेख हैं। इस संहिता का सर्वानुक्रमणी जैसा कोई ग्रंथ नहीं मिलता। फिर भी कुछ टीकाकारों के संकेतानुसार इसमें कुछ काण्डर्षियों तथा संहिता देवता आदि के नाम प्राप्त होते हैं। संहिता में राष्ट्रीय भावना का पर्याप्त और सुपुष्ट विवरण मिलता है। प्रायः ऋग्वेदानुसार देवताविचार होते हुए भी 'रुद्र' दैवत पर विशेष बल दिया गया है। इसका 'रुद्राध्याय' स्वतंत्र है। इसके पद पाठ के रचयिता ऋषि गालव और क्रम पाठ के शाकल्य हैं। - तैलमर्दनम् (प्रहसन) ले जीव न्यायतीर्थ (जन्म 1894 ) । तोडरानंदम् - ले- नीलकंठ । विषय- मुहूर्तशास्त्र । तोडलतन्त्रम् - उमा महेश्वर संवादरूप । श्लोक-500। पटल(उल्लास ) 5| विषय - दस महाविद्याओं के पूजन, पुरश्चरण, होम इ. तोषिणी तांत्रिक संग्रहबंध विषय कुल्लुका, सेतु महासेतु आदि का वर्णन । दक्षमखरक्षणम् (डिम) - ले व्ही. रामानुजाचार्य दक्षयागचम्पू ले नारायण भट्टापाद । - दक्ष स्मृति ले दक्ष ऋषि । इनका उल्लेख याज्ञवल्क्य स्मृति में किया गया है, विश्वरूप, मिताक्षरा व अपरार्क ने "दक्ष-स्मृति" के उद्धरण दिये हैं। जीवानंद संग्रह में उपलब्ध 'दक्ष-स्मृति' में 7 अध्याय व 220 श्लोक हैं। इसमें वर्णित विषय हैंचार आश्रमों का वर्णन, ब्रह्मचारियों के दो प्रकार, द्विज के आह्निक धर्म। कर्मों के विविध प्रकार, नौ प्रकार के कर्मों का विवरण, नौ प्रकार के विकर्म नौ प्रकार के गुप्तकर्म, खुलकर किये जाने वाले नौ कर्म। दान में न दिये जाने वाले पदार्थ, दान, उत्तम पत्नी की स्तुति, शौच के प्रकार, जन्म व मरण के समय होने वाले अशौच का वर्णन, योग व उसके षडंग और साधुओं द्वारा त्याज्य 8 पदार्थो का वर्णन । दक्षाध्वरध्यसंनम् ले म.म. नारायणशास्त्री ख्रिस्ते वाराणसी निवासी । - - दक्षिणकालिका-नित्यपूजालघुपद्धति श्लोक- 5001 दक्षिणकालिकापंचांगम् www.kobatirth.org - 132 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड ले रामभट्ट । रुद्रयामल से संगृहीत। श्लोक 1500 J दक्षिणकालिकापद्धति श्लोक 1000 यह दक्षिण कालिका की पूजा-पद्धति का प्रतिपादक निबन्ध ग्रंथ है। इसमें दक्षिण कालिकापूजा का निरूपण कर अंत में निर्वाण मंत्र दिया गया है जिसका मणिपूर चक्र में ध्यानपूर्वक जप करने का निर्देश है। दक्षिणकालिकार्चनपद्धति - ले त्रैलोक्यनाथ । श्लोक - 836 । विषय- कालिका के उपासकों की दैनिक चर्या के साथ कालीपूजा का विशेष विवरण । दक्षिणकालिकासंक्षेपपूजाप्रयोग श्लोक- 4681 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ले- सुन्दराचार्य । इसका दक्षिणकालिकासपर्याकल्पलता निर्माणकाल शकाब्द- 1480, तथा निर्माणस्थान वाराणसी कहा गया है। I कालीकुलसर्वस्वान्तर्गत दक्षिणकालिका सहस्त्रनामस्तोत्रम् शिव-परशुराम संवाद रूप। श्लोक- 367। दक्षिणकाली ककारादिसहस्त्रनाम ले- आदिनाथ । दक्षिणचैतन्यगूढार्थादर्श - ले काशीनाथभद्र भटोपनामक - जयरामपुत्र । दक्षिणयात्रादर्पणम् कवि श्री गोपालराव अटरेवाले यह चार प्रकरणों का चम्पूकाव्य है । कवि ने इस में दक्षिण भारत की तीर्थयात्रा का वर्णन किया है। रचना अपूर्ण प्रतीत होती है । इस रचना की एकमात्र उपलब्ध पाण्डुलिपि, सिंधिया प्राच्यशोधसंस्थान उज्जैन में है। (क्र. 7124)। प्रस्तुत लेखक द्वारा विरचित (1) (1) वेण्यष्टकम् (2) गोपीगीतम् (3) दक्षिणयात्रादर्पणम् (4) राधाविनोद (चम्पू) इन चार रचनाओं का प्रकाशन ई.स. 1945 में उज्जैन के शोध संस्थान के क्यूरेटर डॉ. सदाशिव कात्रे ने किया है। इस प्रबन्धचतुष्टयम् में उक्त चम्पू का भी समावेश किया गया है। दक्षिणाकल्प ले हरगोविन्द तंत्रवागीश । श्लोक- 10001 दक्षिणाचारचन्द्रिका ले काशीनाथ भोपनामक जयरामभट्ट का पुत्र । श्लोक- 1000 1 - · ले हरकुमार ठाकुर । For Private and Personal Use Only दक्षिणाचारदीपिका ले काशीनाथ। भडोपनामक जयरामभट्ट का पुत्र । श्लोक- 500 1 - दक्षिणामूर्ति उपनिषद् कृष्ण यजुर्वेद से संबंध शिवस्तुति परक एक नव्य उपनिषद् । ब्रह्मावर्त में भांडीर वटवृक्ष के नीचे सत्र हेतु एकत्रित ऋषिगण सत्र की समाप्ति के पश्चात् मार्कण्डेय ऋषि के यहां गए। उन्होंने मार्कण्डेय से अमरत्व एवं नित्यानंद की प्राप्ति का रहस्य जानना चाहा। मार्कण्डेय ने बताया-' "शिवतत्त्व का ज्ञान होने से अमरतत्त्व की प्राप्ति होती है। जिसके द्वारा दक्षिणमुख शिव का साक्षात्कार इंद्रियों को होता है, वह तत्त्व महारहस्य है। इस उपनिषद् में इसी रहस्य को उद्घाटित किया गया है। इसमें कुछ मंत्र भी दिये गए हैं। उनमें मेधादक्षिणामूर्ति मंत्र इस प्रकार है 11 "ओम् नमो भगवते दक्षिणामूर्तये अस्मभ्यं मेघां प्रज्ञां यच्छ स्वाहा " । पश्चात् भावशुद्धि के लिये एक नवाक्षर मंत्र बतलाया है। फिर "ओम् नमः दक्षिणपदमूर्तये ज्ञानं देहि स्वाहा-"
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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