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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७- कंबल को छोड़कर शेष ३ उपकरण रखने वाले करपात्री जिनकल्प यह सातवाँ प्रकार ८- वस्त्र को छोड़कर शेष २ उपकरण (रजोहरण एवं मुहपति) रखने वाले करपात्री जिनकल्प यह आठवाँ प्रकार । ये आठ प्रकार के उपकरणधारी जिनकल्प हैं एवं नवमा प्रकार का जिनकल्प सर्वस्व त्यागियों का है। ये नौ प्रकार में से कोई भी प्रकार का जिनकल्प स्वीकारने वाले महामुनि निम्नप्रकार के गुण सम्पन्न होते हैं: १- अचल धैर्य वाले २- नव पूरव का सम्यग ज्ञान ३- अतुल सहिष्णुता ४- प्रबल रोगोत्पति में भी अप्रतिकार। ५- शुद्ध निर्दोष आहार जल के अभाव में ६ मास तक उपवास। ६- शुद्ध निर्दोष स्थंडिल भूमि के अभाव में ६ माह तक निहार प्रतिबन्ध। ७- केवल आत्मश्रेय एक ही निर्धार। ८- किसी को भी उपदेश एवं दीक्षा नहीं देते। ९- केवल दिन के तृतीय प्रहर में ही आहार निहार एवं विहार करते। १०- शेष अहोरात्र के सातों प्रहर काउसग्ग ध्यान में रहते हैं। ११- विहार करते-करते जहाँ चतुर्थ प्रहर प्रारंभ हो वहाँ चाहे वह स्थान वन हो या पर्वत गाँव हो या शहर, श्मशान हो या उपवन जहाँ हो वहाँ स्थिर काउसग्ग ध्यान में रहते हैं। इस प्रकारयह जिनकल्प श्री महावीर परमात्मा के शासनकाल में श्री जंबुस्वामी के निर्वाण समय में दस वस्तु के अंतर्गत विच्छेद हुआ है। इसलिए पू. आर्य महागिरिजी म. जिनकल्प न करते हुए केवल जिनकल्प की तुलनाही मात्र करते ___पू. गुरुदेव के मुख से जिनकल्प का अधिकार सुनने के बाद शिवभूति मुनि ने कहा कि है गुरुदेव! मैं सर्वस्व त्याग स्वरूप जिनकल्प करने के लिए समर्थ हूँ और मैं यहीं जिनकल्प को स्वीकार करता हूँ। क्योंकि वास्तविक निर्ग्रन्थता स्वरूप मुनि मार्ग मुझे इसमें ही नजर आ रहा है। ऐसा कहकर पहने हुए वस्त्र आदि उपकरणों १५ For Private And Personal
SR No.020622
Book TitleSammetshikhar Jain Maha Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1994
Total Pages71
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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