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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अहिंसा/संयम एवं तपश्चर्या स्वरूप सर्व विरती धर्म का दृढ़ अभ्यास ज्ञपरिज्ञाः ग्रहण शिक्षा एवं प्रत्याखान परिज्ञा/आसेवन शिक्षा द्वारा प्राप्त करने के बाद सामायिक एवं छेदोपस्थान चारित्र साधना के साथ-साथ कतिपय साहसिक पराक्रमी प्रथम संघयण वाले महामुनियों परिहार विशुद्धि चारित्र का कल्पानुसार १८ माह तक अभ्यास पूर्ण करने के बाद यदि वे चाहते तो स्थविरकल्प में पुनः प्रवेश करते या तो जिन कल्प को स्वीकार करते हैं। ___यह परिहार विशुद्धि एवं जिनकल्प का प्रारंभ जिनेश्वर परमात्मा के कर-कमलों से पवित्र वासक्षेप प्राप्त करने के द्वारा होता है या जिनेश्वर परमात्मा से ऐसी शिक्षा जिन्होंने प्राप्त की है, ऐसे महामुनियों के कर-कमलों से ही होता है और कोई तीसरे से कभी नहीं....। जिनकल्प का आचरण बहुविध योग्यतानुसार निम्न प्रकार से होता है:१- उपधिपात्र आदि उपकरण के साथ २- सर्वस्व के त्याग के साथ ३- उपधि प्राप्त आदि उपकरण रखने वालों के भी आठ प्रकार निम्न प्रकार से जानना चाहिए: १. रजोहरण २. मुखवस्त्रिका (मुहपति) ३. पात्र ४. पात्र बंधन ५. पात्र स्थापन ६. पात्र केसरिका (पुंजणी) ७. पल्ला ८. गुच्छा ९. पात्र नियोंग १०. सूती वस्त्र ११. उनी (गरम) १२. कंबल के साथ रखने की सुती कपड़ा। कुल मिलाकर १२ उपकरण हुए यह प्रथम प्रकार २- अंतिम एक वस्त्र छोड़कर ११ उपकरण रखने वाले जिनकल्प यह दूसरा प्रकार ३- कंबल के सिवाय शेष १० उपकरण रखने वाले जिनकल्प यह तीसरा प्रकार ४- सुती वस्त्रों को छोड़कर शेष ९ उपकरण रखने वाले जिनकल्प चौथा प्रकार ५- पात्र के सभी उपकरण को छोड़कर शेष पाँच उपकरण रखने वाले जिनकल्प करपात्री- यह पाँचवाँ प्रकार ६- अंतिम वस्त्र को छोड़कर शेष ४ उपकरण रखने वाले करपात्री जिनकल्प यह छठा प्रकार १४ For Private And Personal
SR No.020622
Book TitleSammetshikhar Jain Maha Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1994
Total Pages71
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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