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है कि अब भी वे इस बृद्धावस्था में सुमार्गका अनुसरण कर यावत्जीवन जैन समाज की कुछ सेवा कर शान्ति स्थापित करें और यशके पात्र वने। अन्यथा, उनके द्वेषाग्निरूपी ज्वरको शान्त करनेके लिये मेरे पास प्राचीन ग्रन्थों से प्राप्त सामग्री रूपी कुनैन की गोलियां भरी पड़ी हैं। तुरन्त ही उनका ज्वर शान्त कर दिया जायगा और उनके कुकृत्योंके कारण उन्हे गच्छले वहिष्कृत कर देनेकी भी नौवत आ जायगी।
द्वितोयतः पाठक तथा जनतासे अनुरोध करना है कि वे इस पुस्तकको ध्यान पूर्वक, दत्त वित्त, होकर पढ़े और सागरियों कि गुरु परम्परासे भिज्ञ होकर और उनके कुकृत्योंको समझ कर उनके चङ्गली से सवेदा वचने की चेष्टा करते रहे। ___ इन्ही दो कारणोंसे मैंने इस पुस्तको लिखा है। तथा पाठ कवृन्द को इससे कुछ भी फायदा होता हुआ सनगा तो पुन: उनको सेवामें तीसरा पुष्य शीघ्रही भेंट चढ़ाऊंगा।
सूर्यमल यति ।
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