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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋषि मंडल यंत्रमें पदस्थ ध्येय स्वरूप अर्थात्, अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ऋ, ऋ, ल, लु, भो, औ, अं, अः इस तरह चितवन करना बादमे-- हृदयमें स्थापित कमल का पुष्प जिसके चौबीस पत्ते बनाना जिसकी कर्णिका सहित पुष्पमें पच्चीस वर्णाक्षर अनुक्रम से स्थापित करना जैसे, क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ब, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, मतक चितवन करना उसके बाद मुखकमल में आठ पत्तेवाले कमल के अंदर बाकी रहे हुये आठ वर्णाक्षर अर्थात् , य, र, ल, व, श, ष, स, ह का चिंतवन करना, इस तरह का चिंतवन करने वाले श्रुत पारगामी हो जाते हैं, ध्यान करने का अनुभव जिन्होने प्राप्त किया हो उन महापुरुषों से एसे ध्यान कास्वरुप समझ कर अभ्यास बढाया जाय तो अवश्य लाभदाई होगा, और जो महापुरुष इस का ज्ञान प्राप्त कर के अनादि सिद्धि वर्णात्मक ध्यान यथाविधि करते रहते हैं उनको अल्प समयमें ही, गया, आया, होनेवाला, जीवन मरण शुभ, अशुभ आदि जानने का ज्ञान उत्पन्न हो जाता है । ___ दूसरा ध्यान यूं बताया है कि नाभिकमल के नीचे आठ ' वर्ग के आद्याक्षर जैसे अ, क, च, ट, त, प, य, श आठ पत्तों सहित स्वरकी पंक्ति युक्त केसरासहित मनोहर आठ पांखडीवाला कमल चितवन करे । तमाम पत्तों की संधियां सिद्ध पुरुषों की स्तुति से शोभित करना, और तमाम पत्तों के अग्र For Private and Personal Use Only
SR No.020611
Book TitleRushimandal Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1940
Total Pages111
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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