SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋषि मंडल यंत्रमें पदस्थ ध्येय स्वरूप ऋषिमंडल यंत्र में अक्षरों की योजना और स्वर व्यंजन के साथ संयुक्ताक्षर के मंत्र बीजाक्षरका मिश्रण देख आश्चर्य करने की आवश्यकता नही है । प्राचीन ग्रन्थो में जो बात प्रतिपादित होती है वह विना कारण के नही होती, साधारण बुद्धिवाला मनुष्य ज्यादे अनुभवी न होने से उसे एसा खयाल हो जाता है कि, स्वर व्यंजन के अक्षरों की क्या पूजा बताई ? लेकिन इसके प्राचीन प्रमाण बहुत से सम्पादन होते है, उनमें से एक उदाहरण योगशास्त्रका जिसमें श्रीमान् हेमचन्द्राचार्यजी महाराजने पदस्थ ध्येय का स्वरुप बताते कथन किया है उसका संक्षेप से पाठकों के समझने के हेतु यहां उल्लेख करेंगे। योगशास्त्र में बयान है कि पवित्र पदों का आलम्बन लेकर ध्यान किया जाता है उसीको शास्त्रवेत्ताओंने पदस्थ ध्यान कहा है, जिसका स्वरुप बताया है कि नाभिकमल के उपर सोलह पत्ते वाले कमल के पुष्प का चितवन करे, और पत्ते पर भ्रमण करती हुई स्वर की पंक्तिका चितवन करना For Private and Personal Use Only
SR No.020611
Book TitleRushimandal Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1940
Total Pages111
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy