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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४६ ) कूहर. कुरौ-संज्ञा, पु० [सं० कुरज] एक जंगली पेड़, | राते नैन । --बिहारी जिसके पुष्प बहुत सुन्दर होते हैं। कुही-संज्ञा, स्त्री० [सं० कुधि] बाज की तरह उदा. केसरि किसु कुसुभ कुरौ किरवार कनैरनि एक शिकारी चिड़िया । रंग रची है। -देव ऊदा० लाज इतै, इत जी को इलाज, सुलाज भई कूलकना क्रि० प्र० [हिं० कुलकना] आनंदित अब लाज कुही सी। --देव होना, खुशी से उछलना। कूचे--संज्ञा, पु० [अ० गुचा] महुवे के गुच्छे । उदा० लै लै सिर माही मांठ कुलकि कुलाहल के, उदा० नाँघत-नाँघत घोर घने बन हारि परे यों स्याम पाये स्याम पाये धाईजाति बन मैं । कटे मनो कूचे। - भूषण --बेनी प्रवीन कूछित--वि० [सं० कुत्सित] कुत्सित, घृणाकुलफनि-संज्ञा, पु० [सं० फरिण + कुल] सपों का स्पद । कुल, सर्प समूह । उदा० करै नीचता नीच कूर कूछित ज्यौं कूकर । उदा० उतरत सेज ते सखीन सुखदेनी थाँमी. -ब्रजनिधि बेनी लांबी लखे लाज मरै कुलफनि के । कूजा-संज्ञा, पु० [फा० कूजा] लघु जलपात्र . --देव कुल्हड़, मिट्टी का एक छोटा पात्र। कुलीर--संज्ञा, पु० [सं०] केकड़ा। उदा० कूजा कंचन रतनयुत, सुचि सुगन्ध जल पूरि उदा०द्वीप रत्न जलजंतु पुनि, भ्रमर तरंग कुलीर। -नरोत्तमदास -काव्य प्रभाकर से कूट-संज्ञा, पु० [सं०] १. समूह, २. पर्वत । कुल्ले--संज्ञा, पु० [? ] घोड़े की एक जाति । उदा० १. कठिन कूठाट काठ कुठित कुठार कूट उदा० कूदम कुल कुल्ले अमित अतुल्ले खूबनि रूठि हठ कोठरी कपाट कपटन की ! खुल्ले फबि हेरै। --पद्माकर कुल्हाट-संज्ञा, पु० [हिं० कुलांछ, कुलांट] कूटि-संज्ञा, स्त्री० [सं० कूट] १. ढेर, राशि, उछलने या छलांग मारने की क्रिया, पैर ऊपर समूह । २. हँसी, दिल्लगी, मजाक। और सिर नीचे करके नटों की भाँति उलटना । उदा० १. गुन अंत्र टूटि । पुनि मुड कूटि । छिति उदा० मारत ही भट तें भूकै । भट नट मनौं गिरत खद्र । हँसि अट्र पट्ट। -सोमनाथ . कुल्हा , चुकै। --केशव कूब संज्ञा, स्त्री० [अ० कुव्वः] कुव्वत, बल, कुसुमेषु-संज्ञा, पु० [सं०] कामदेव, मनोज, शक्ति, जोर, सामर्थ्य । कुसुमशर। उदा० सखी से कही गहि ल्याबो । जिसी अब कूब उदा० चित चायतें लै लै मिली है मनो कुसुम सों पावो ! -बोधा स्तवके कुसुमेषु की सैन सबै ।। -दास कर--वि० [?] १. मूर्ख २. क्रूर, दुष्ट । कसेस-संज्ञा, पु० [सं० कुशेशय] कुशेशय, उदा० पूरन की रीति है जू डेल ऐसो डारि देत कमल । -मतिराम उदा० मोहनी कला सी मंजु कलिका कुसेस कैसी भये न केते जगत के चतुर चितेरै कूर । मुद्रित प्ररथ पर जैसे कोकछंद को। -बिहारी --चन्द्रशेखर कूरा - संज्ञा, पु० [सं० कूट, प्रा० कूउ] समूह, ढेर कुसल--संज्ञा, पु० [हिं० कु+सैल] १, कुमार्ग, राशि । बुरा मार्ग । उदा० यहि विधि वृथ कैसादिक सूरो। उदा० संतन के पैंडे परै कुसल सदा ही चलै, पर दीरत भये सबै भट कूरा । --रघुराज धन हरिबे कौं साधन करत हैं। कूट संज्ञा, स्त्री० [हिं० कूक] चीख चिल्लाहट । -सेनापति | उदा० घर-घर कूहर सी भई कूहरही पुरछाय । कुह--क्रि० प्र० [फा० कुश्तन] मारना, मर्दन ऊहर सब कूहर भई बनितन लगी बलाय । करना । -बोधा उदा० बन-बाटनु पिक बटपरा लखि बिरहिनु मत कूहर - संज्ञा, स्त्री० [हिं० कुहराम] कुहराम, मैंन । कुहौ-कुही कहि-कहि उठे, करि-करि For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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