SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कुतरी ( ४८ उदा० १. नदी कूल कुज मूल परसि विनसे रद करतें । - दीनदयाल गिरि कुत्ता, श्वान ] | ! [हिं० कुतरी -संज्ञा, स्त्री० कुतिया, श्वानी । उदा० सोयो सब सहर पहर देकै पाहरू श्री जान्यो जब जागत न कहूँ कोऊ कुतरी । —रघुनाथ कुनित - वि० [सं० क्वरित ] बजता हुआ, मधुर ध्वनि करता हुआ । उदा० केसव कमल मूल अलिकुल कुनित कि मनु प्रतिधुनित सुमनित निचयके । —केशव कुन्नस - संज्ञा स्त्री० [फा०] प्रार्थना, विनती । उदा० इतने क्षरण जन एक तह कुन्नसकर कर जोर, अर्जवन्त ठाड़ो भयो नजर अग्र-भय छोर । -बोधा उदा० कुबंड – संज्ञा, पु० [सं० कोदण्ड ] धनुष । उदित प्रताप उदसाहि के प्रताप माहि रोस सुनि काहि रही कुबति कुबंड मैं । गंग [सं० कु + वार्ता] खोटाई कुबत – संज्ञा, स्त्री ० बदमाशो, बुरी बात । उदा० कति न देवर की कुबत कुल तिय कलह - बिहारी १. टेढ़िया, हो २. कंस डरात । कुबरी – संज्ञा, स्त्री० [हि० कुबड़ा] वह छड़ी जिसका अग्र भाग भुका की दासी कुब्जा । उदा० १. पाठ करें सब जोग ही को जुपै काठहू की कुबरी कहूँ पावें । -दास कुबल- संज्ञा, पु० [सं० कुबलय] १. कुबलय, कमल २. मोती, ३. जल । उदा० १. केसरि असोक केस कुबल कदम्ब कुल कुंज-कुंज मंजु अलि पुंज भनि रहे हैं । - देव कुमक - संज्ञा, स्त्री० [तु० ] सहायता, मदद | उदा० केलि-रस साने दोऊ थकित बिकाने तऊ, हां की होत कुमक सुनों की धूम धाम पर -द्विजदेव कुमकुम - संज्ञा, पु० [तु० कुमकुम ] कुमकुम एक प्रकार का लाख से निर्मित पोला गोला या कुप्पी जिसमें अबीर और गुलाल भर कर होली के अवसर पर लोग एक दूसरे पर मारते हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir > कुरेवा उदा० मारत कुंकुम केसरि के, पिचकारिन में रंग को भरि के । - रसखानि कुरंगसार संज्ञा, पु० [सं०] मृगमद, कस्तूरी । उदा० श्रांखिन मैं देखि तेरे कारी कजराई है कारोई कुरंगसार घसि के लगाउ अंग । - सुन्दर कुरकुट - संज्ञा, पु० [सं० कुक्कट] मुर्गा | उदा० कुरकुट कोट-कोट कोठरी निवार राखो चुन दे चिरैयन को मूंदि राखों जलियो । — प्रबेनी राय कुरना- क्रि० स० [हिं० कुरा ढ़ेर ] राशीभूत होना, एकत्रित होना, डंटना । उदा० दाख दुरि जाइ मिसिरीयौ मुरि जाइ कंद कैसे कुरिजाइ सुधा सटक्यो सवारे को । कुरवा -- संज्ञा, स्त्री० [अ० कुरबानी ] बलि दास दान । काला उदा० जुरवा जुलूस तौन उरवा परत काम कुरवा करत मंजु मुरवा तिहारे है । भौनकवि कुरहरे - वि० [बुं०] चितकबरा, श्राधा और आधा लाल । उदा० केसू कुरहरे प्रधजरे मानो क्वैला धरे क्वैल हाई कोयल करेजो भू जे खाति है । स्त्री० [सं० क्रूरता ] क्रूरता, -श्रालम कुराई -संज्ञा, दुष्टता । उदा० कोक की कहानी कहै तासों कहाँ कहा कहीं । 'आलम' जु कहि रहे जानि हौ कुराई के | -प्रालम कुरार - संज्ञा, पु० [हिं० कुलेल ] कुलेल, क्रीड़ा । उदा० नाक ते कीर कुरार करें कहि तोष छपाइ के मोहि छपावें । --तोष तेहि ऊपर फूलि सरोज रह्यो तेहि मैं एक कीर कुरारि करे । तोष कुरो -संज्ञा, पु० [सं० कुल ] कुल, परिवार वंशज । --पद्माकर उदा० संग लिये छत्रिन की कुरी कबहूँ न जे रन में मुरी । कुरेवा संज्ञा, पु० [ ? ] काले रंग का एक कीड़ा । उदा० कहै कवि गंग देखौ भँवर कुरेवा दोऊ, एक रंग डार बैठे जाति प्रमुमानिये । -गंग For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy