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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org इंगवं- - संज्ञा, पु० [ ? ] शूकर दन्त । उदा० बंक लगे कुच बीच नखच्छत देखि भई दृग दून लजारी । मानो वियोग बराह हन्यो युग शैल की संधिन इंगवं डारी । केशव इंडुरो— संज्ञा, स्त्री० [सं० कुंडली ] कपड़े की गोलाकार गद्दी जिसे पानी के घड़े या बोझ आदि के नीचे रख लिया जाता है । उदा० गागरि डारि मजे इंडुरी गहि काँकरि डारत प्रौसर ले हो । -श्रालम आई संग लिन के ननद पठाई नीठि, सोहति सुहाई सीस ईडुरी सुपट की । - पद्माकर इंदरा मंदिर —संज्ञा, पु० [सं० इंदिरा-मंदिर ] लक्ष्मी का गृह, कमल । उदा० देवजू इंदिरा मंदिर की नव सुंदरि इंदरामंदिर नैनी । -देव इंदु उपल- -संज्ञा, स्त्री० [सं०] चन्द्रकांतमरिण, उदा० इंदु उपल उर बाल कौ, कठिन देखे बिन कैसें द्रवै, तो मुख मान में होत । इंदु उदोत । — मतिराम इन्दुनंव-संज्ञा, पु० [सं० इन्दु = चंद्रमा + नंद = पुत्र = बुध ] बुध, एक ग्रह विशेष । उदा० भने रघुनाथ किधौं मेरुकंदरा में चंद, कंधों भानु गोद में बिराजो इन्दुनंद री । --रघुनाथ इंदुमनि -संज्ञा, स्त्री ० [सं० इन्दुमरिण ] चन्द्रकांतमरिण नामक एक मरिण जो चन्द्र प्रकाश में द्रवित होती है । उदा० इंदुमनि मंदिर महालय हिमालय ते ऊँची रुचि, करतु सुमेरु सानु भानु तर । —देव इकंक — कि० वि० [हिं० एक + आंक ] पूर्णरूपेण, निश्चय । उदा० घटती इकंक होन लागी लंक बासर की । केस तम बंस को मनोरथ फलीनमो । - दास राम तिहारे सुजस जग, कीन्हों सेत इकंक । -दास इ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इकच्चक संज्ञा, पु० [सं० एक चक्र ] सूर्य, रवि । उदा० स्रवन मैं हाथ कुंडलाकृति धनुष बीच, सुंदर बदन इकचक लेखियत है । -सेनापति इकठां-संज्ञा, पु० [हिं० एक + ठाँव स्थान ] एक स्थान, एक जगह। उदा० भूलि सबै सुधि खेलन की, न घरीक कहूँ एकठां ठहराति है । - सोमनाथ इकतो - वि० [सं० एक ] अद्वितीय, बेजोड़ एक ही । उदा० काछ नयौ इकतौ बर जेउर दीठि जसोमति रांज करी । —रसखानि इकलाई — संज्ञा, स्त्री० [हिं० + लाई या लोई = पत्त ] चादर, एक पाट का महीन दुपट्टा । उदा० पाय दियौ चलिब को उतें सिर ते इकलाई गिरी रँगसानी | - सोमनाथ इकलासवि० [सं० एकरस ] समान, एक ढंग कियो सबही - ठाकुर का । उदा० कुबरी - कान्हर को इकलास विधि खूब है अल्ला । इकहाऊ— क्रि० वि० [सं० एक + हि० हाई, प्रत्य] एक बारगी, एक साथ, अचानक । उदा० त्यों पद्माकर भोरी झमाइ सु दौरों सबै हरि पै इकहाऊ । - पद्माकर —घनानन्द इकसे - वि० [सं० एक + आवास ] अकेले 1 उदा० सौतिन तें पिय पाय इकौंसे भरे भुज सोचसकोच निवारे । इचनि – संज्ञा, स्त्री० [ ? ] आकर्षण, खिंचाव 1 उदा० नीकी नासा पुट ही की उचनि अचंभे भरी, मुरि कै इचनि सों न क्यौंहू मन तें मुरं । —घनानंद इजाफा -संज्ञो, पु० [अ० इज़ाफ़ा ] वृद्धि, बढ़ती । उदा० ग्वाल कवि कहे प्याला, बाला ये दुहून ही -ग्वाल में, सबही ने जान्यौ ठीक आनंद इजाफा सौ । इजार संज्ञा, पु० [फा० इजार ] पायजामा, सूथना । For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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