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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाह आरौ ( २० प्रारौ-संज्ञा, पु० [सं० आरव] पारव, शब्द, | उदा० १.दीरघ मत सतकबिन के अर्थाशय लघुतर्ण आहट । कवि दुलह याते कियो कबि कुल कंठाभरणं उदा० दूरितें आय दुरै हो दिखाय अटा चढ़ि जाय -दूलह गयौ तहाँ आरौ । -रसखानि प्राशीविष-संज्ञा, पु० [सं०] सर्प, सांप । मालकस-संज्ञा, पु० [सं० आलस्य] सुस्ती, उदा० पाशीविष दोषन की दरी । गुरण सत पुरुषन पालस्य । कारण छरी । --केशव उदा० जम्माह को जानिये. सात्विक भावन माह होत पालकस आदिते, बरनत हैं कबि आस--संज्ञा, पु० [सं० असु] असु, प्रारण, जीव नाह। उदा० मनो कर जोर पाँचो तत्व एक ठीरह के -बेनी प्रवीन पास लेने आपने को धाये चहुँ ओर तें माला--वि० [अ] १. उत्तम, बढ़िया, श्रेष्ठ २. -रसलीन गौखा, ताखा । उदा० सोने की अँगीठिन में अगिन अधम होय. प्रासा-संज्ञा, पु० [अ० असा] डंडा, सोने चाँदी का डंडा जिसे बरात आदि में चोबदार शोभा होय धूम धार हू तो मृगमद पाला की । के लिए ले कर चलते है। -वाल उदा० आप कहूँ आसा कहूँ तसबी कहूँ कितेब । आली-संज्ञा, स्त्री० [पहा०] क्यारी, चार विस्वा -बिहारी के बराबर खेत । माँगत है भीख मौ कहावे भीख प्रभु हम उदा० प्राली चंदन की न क्यों पाली माली कूर । धरे याकी पासा याकों प्रासा धरे देखिये -दीनदयाल -दास आले-वि० [सं० आर्द्र] १. गीला, पा, २. प्रासार-संज्ञा, पु० [सं०] वृष्टि, वर्षा २. चिह्न उत्तम, अधिक [अ०] । लक्षण [अ०].. उदा० १. आड़े दै प्राले बसन जाड़ेह की रात, उदा० पानँद पयोद सु बिनोद प्रासार बल मधुर साहस के के नेह बस सखी सबै ढिग जात रसनिधि तरंगनि बिराजत उगचि । प्राबज--संज्ञा, पु० [हिं० आबझ] बाजा विशेष, -घनानन्द ताशा । उदा० बहबंदी जन पढ़त बिरद बज्जत पावज प्रासिलो-संज्ञा, पु० [अ० वसीला] जरिया, साज घन । तिहि समैं मुहूरत जानि के बहाना । लग्यौ सिंहासन पै चढ़न । ---सोमनाथ उदा० कहि धौं कछू पासिलो भयौं । कै काहू बन जीवन हयौ । -केशव प्रावरे-वि० [?] दीन, शिथिल । उदा० औसर न सोचें घनानंद बिमोचै जल लोचैं पासना-संज्ञा, स्त्री० [फा० प्राशना] प्रेमिका, नायिका । वही मूरति अरबरानि आवरे ।। -घनानन्द उदा० मध्य रस सिंधु मानौं सिंहल त पाई वह तेरी पासनाउ गुन गहौ तीर पाई है। ऊषमा विषम विषमेखु स्वेद विदु चुवै अधर -सेनापति न पावरे सुमन सर साधी सी । -देव आहन-संज्ञा, पु० [फा०] लोहा।। प्रावस-संज्ञा, स्त्री० [हिं० औस] प्रौंस, माप । उदा० पाहिन जाति अहीर अहो तुम्हें कान्ह कहा उदा० अन्तर-पाँच उसास तचे प्रति, अंग उसीज कहौ काहू की पीर न । -देव उदेग की आवस । -घनानन्द पाहु-संज्ञा, पु० [सं० पाहव] साहस, हिम्मत । प्राशय-संज्ञा, पु० [सं०] १. कोष्ठागार, विभव उदा० रहयो राहु अति प्राहु करि मनु ससि सूर २. तात्पर्य । समेत । -बिहार For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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