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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निजर नालकी ( १३७ ) किरचें उचट कलधौत के नालन की। २. साँझ समैं बीथिन मैं ठानी दुगमीचनी -गंग भोराई तिन राधे को जुगुति के निखोटि २. माने क्यों कनौड़ी बाल कीन्हों तुम ऐसो खोटि। ख्याल भोड़िन के नाल लाल भटकि निगार-संज्ञा, पु० [फा०] १. चित्र, प्रतिमा, मटकि जू। -तोष बुत, २. प्रेमपात्र, प्रेमिका। नालकी-संज्ञा, स्त्री० [सं० नाल-डंडा] खुली उदा० आनंद होय तबै सजनी, दर सोहबते यार हुई पालकी जिस पर मेहराबदार छाजन होती निगार नशीनम् । -गंग निग्रह- संज्ञा, पु० [सं०] त्याग, मुक्ति, छोड़ना, उदा० कंचन रंजित सुभग टुटीं अरु लुटी नालकी। उदा० अघ निग्रह संग्रह धर्म कथान, परिग्रह -सूदन साधुन को गनु है। -केशव पालकी मैं चढ़ि मति भूल मूढ़ नालकी निघट्टना-क्रि० सं० [हिं० निघट] समाप्त करना, मैं । -ग्वाल नष्ट करना। नासर-संज्ञा, पु० [सं० नाश नाश, ध्वंस ।। उदा० ठठ्ठ मरहट्टा के निघट्टि डारे बानन सौं, उदा० लोक चतुर्दश को करता कर तेरे रहै पेसकसि लेत हैं प्रचंड तिल गाने की। उतपात औ नासर । -बोधा -सोमनाथ नावक-संज्ञा, पु० [फा०] १. शिकारी २. एक निघरा-वि० [हिं० नि+घर] वह व्यक्ति प्रकार का छोटा बाण। जिसके घर-बार न हो, खाना बदोश, निगोड़ा, उदा० सतसैया के दोहरे ज्यों नावक के तीर । २. निर्लज्ज । -अज्ञात उदा० देव तहाँ निघरे नट की बिगरी मति को नासी-संज्ञा, स्त्री० [सं० नाश] दुःख, विषाद । सगरी निसि नाच्यो । -देव उदा० जा मुख हाँसी लसी घनानंद, कैसें सुहाति निचल-वि० [सं० निः+चल] स्थिर, अटल । बसी तहाँ नासी । -घनानंद उदा० यह जीव नाच नाना करत निचली रहत नि कासि-संज्ञा, पु० [हिं० निकसना] मैदान, न एकदम । -ब्रजनिधि रणक्षेत्र । निचली-वि० [सं० नि+चल] स्थिर, अचल । उदा० देखत न पीछे की निकासि कैयौ कोसन से, उदा० खिचली भुजा सों लाल पिचली हिये सों लैक करवाल बाग लेत बिलसत हैं। लाय निचली रहे न डोले विचली पलंग पर। --सेनापति -ग्वाल निकुंभिला-संज्ञा, स्त्री०[सं०] लंका की पश्चिम निचोर-संज्ञा, पु० [हिं० निचोल] स्त्रियों की दिशा की एक गुफा जिसमें मेघनाद देवी के ओढ़नी या चादर। समक्ष यज्ञादि क्रियाएँ करके रणस्थल के लिए | उदा० ग्वाल कवि कहै ऊन अंबर निचोरै जहाँ, प्रयाण करता था। सूती बसनन तें तो बहे सात घोरा से । उदा० साधे करबालिका चढ़ाई मुंडमालिका, -ग्वाल निकुंभिला में कलिका की मालिका जपतभो। | निछर–वि० [हिं० निछल, सं० निश्छल] निश्छल, -समाधान निष्कपट। निखसमी-वि० [सं० नि=बिना+अ० खस्म = उदा० रोगनि में सोगनि में, विपति में, कैसे लहै, पति] बिना पति के, रांड़, विधवा । ऐसे निछरे में मन राधा कृष्ण कहिरे । उदा० दीपमाला साधुन प्रसाधुन अमावस सु. -सूरति मिश्र मानति संराध बैरी बधु ह्व निखसमी । । निछौरी-संज्ञा, स्त्री० [हिं० निछावर निछावर, -देव बलिहारी। निखोट-क्रि० वि० [हिं० नि+खोट]-१. उदा० माता बरदायनि हौ दीन सुख दायनि हौ बेधड़क, निस्संकोच २. निर्दोष । गिरिजा गोसायनि हौ पग पै निछौरी मैं । उदा० निपट निखोट करें चोट पर चोट, लौटि - -नंदराम जानत न, जुद्ध जुरै उध्धत प्रवाई के निजर-संज्ञा, स्त्री० [नजर] दृष्टि, निगाह । -पद्माकर । उदा० हाथी निजर संत मैं दीनी । सूड पसारि फा०-१८ एस For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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